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________________ जन्य (२७२) ॥ मुनि कस्तूरविजयविनिर्मिता ॥ (श) दशमुख:, दहमुहो,दसमुहो. (शष, विशेषः, विसेतो. (ष) पाषाणः, पासाणो, पाहाणो. (य) करणीयम्. करणिज्ज, (ह) सिंहः, सिंघो, सीहो, . करणीय. (ह) संहारः, संघारो संहारो. (य) द्वितीयः. बिइज्जो, बीओ, [ह) दाहः, दाघो .. (य) पेया, पेज्जा, पेआ, (५) संयुक्त व्यंजननी अन्ते म, न, य, ल, व,ब, र, होय अने संयुक्तनी पूर्वे ल, व, ब, र, होय तो लोप थायछे, अने य,. र, व, श, ष, स, एव्यञ्जन श, ष, स, नीसाथे जोडाएला . होय तो ते व्यंजननो लोप थये छते पर्वनो स्वर दीर्घ थायछे. मं० प्रा० सं० प्रा० (म] युग्मम्, जुग्गं, (ब) अब्दः अहो. (न] नग्नः नग्गो, (य) शिष्यः, सीसो. (य) कुडयम्, कुई, (व) अश्वः, आसो. (ल] विक्लवः, विक्कवो, (र) वर्षः, ' वासो. . (व) पक्वम्, पक्कं, (श) मनश्शिला, मणासिला. (ब) शब्दः, सहो, . (ष] निषिक्तः, नीसित्तो. (र) चक्रम्, चक्कं.. (स) नि:स्वः, नीसो. (ल) वल्कलम्, वक्कलं, (..) निस्सहः, नीसहो (र) अर्कः, अक्को , (६) पदनी अन्दर रहेलो जे संयुक्त व्यञ्जननो शेष (संयुक्त व्यजनमाथी एकनो लोप थयाथी जे बाकी रहे ते ) तथा तेनो आदेश (संयुक्त व्यंजनने स्थाने बीजो जे व्यञ्जन थाय ते) द्वित्व थायछे, परन्तु दीर्घ स्वर अने अनुस्वारथी पर व्यअननो नथा र, ह, नो शेष तथा आदेश द्वित्व थती नथी अने.
SR No.002256
Book TitlePrakrit Rupmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay
PublisherVadilal Bapulal Shah
Publication Year1926
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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