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________________ ॥ प्राकृतमिवनमाला ॥ (२७३) Wuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu प्रा. समासमां विकरुपे द्विस्व थायछे, सं० प्रा० सं०. तीर्थकरः, तित्थयरो, विड्वलः, विहलो, पुष्पम्, पुप्फ. कार्षापणः, - काहावणो. स्पर्शः, फासो, ईश्वरः, ईसरो, देवस्तुति:, देवत्थुई, देवथुई शीर्षम्, सोसं. कुसुमप्रकरः, कुसुमप्पयरो, संध्या, संझा, कुसुमपयरो. यस्रम्, तंसं, आलानस्तम्भः आणालक्खम्भो, सौन्दर्यम्, सुन्देरं, ' . . आणालखम्भो. (७) 'स्त, नो थ', 'स्प, प नो फ', 'स्य अने त्वनो च', 'थ्व नो छ', 'तू नो ज', 'ध्व नो झ', 'अने क्ष नो ख अने कोइ ठेकाणे छ. अने झ पण थाय छे', अने 'ध ग्य, यं नो ज' ध्य, ने छ नो झ', ' नो ठ', 'म्न, ज्ञ, नो ण ' 'इम अने क्मनो प', 'न्म नो म' संज्ञा अर्थमा ‘क ने स्क नो ख' थाय तथा हस्वस्वरथो पर थ्य, श्व, त्स, प्सनो छ', थाय छे. अपवाद - 'स्तंम्ब, अने समस्त. शब्दना स्त, नो थ', 'चैत्यना . त्य नो च'. 'उष्ट्र, इष्टा ने संदिष्ट, शब्दनाष्ट नो ठ' थतो नथी - यथा - तम्बो, समत्तो, चइत्तं, उट्टो, ... इट्टा, संदट्टो. सं० प्रा० सं० प्रा० (स्त) स्तुतिः, थुई, (घ) मह्यम्, मज्झं (स्प) बृहस्पतिः, बिहप्फर्ड (ष्ट) मुष्टि:, मुठ्ठी, (प) निष्पापः, णिप्फावो. (म्नः) प्रधुम्नः पज्जुण्णो, (प) पुष्पम्, पुष्पं. (ज्ञ) ज्ञानम्, जाणं, णाणं, (त्य) सत्यम्. सच्च नाणं,
SR No.002256
Book TitlePrakrit Rupmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay
PublisherVadilal Bapulal Shah
Publication Year1926
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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