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(२७०) ॥ मुनि कस्तूरविजयविनिर्मिता ॥ (६) स्वर परछतां पूर्वना स्वरनो घणुकरीने लोप थाय छे.
त्रिदशेशः, तिअसोसो. दिनेश्वरः, दिणोसरो. (७) त्यद आदि सर्वनामथी अने अव्ययथी पर त्यद् आदि सर्वनाम
अने अव्यय आवे तो पछीना न्यद् आदि सर्वनामना अने अध्ययना आदिनो स्वर प्रायः लोपाय छे.. षयम् अत्र, (अम्हे एत्थ) अम्हेत्थ यदि अहम, जइ अहं जइहं. यदि इयम्. (जह इमा) जइमा.
संस्कृत शब्दो उपरथी प्राकृत शब्दो बनाववाना
-- सामान्य नियमो. -- (१) जे नामोमां क, ग, चं; ज, त, द, प, य, व, एटला व्यंजनो
अनादिमां स्वरथी पर अने असंयुक्त होय तो प्रायः लोप थाय छे अने अवर्णथी पर प, होय तो लोप थतो नथी, किन्तु ' व 'थाय छे, अने आ व्यंजननो लोप थए छते 'अ' वर्णथी पर जो शेष 'अ' वर्ण आवे तो य, थाय छे. सं० प्रा०
स० . (क] तीर्थकरः, तित्थयरो. (द) गदा, गया.
(द) मदनः, मयणो. (ग) मृगाङ्कः, मयंको (प) रिपुः रिऊ (च) सची, सई. (प] सुपुरुषः, सउरिसो. (ज) रजतम्, रययं (य) वियोग, विओओ (त) यतिः, जई. (व) लावण्यम, लायण्ण (२) अनादिमां स्वरथी पर अने असंयुक्त जे ख, घ, थ, ध, भ,
नो प्रायः 'ह' थाय अने 'ट, नो ड'. 'ठ, नोट', 'ड, नोल'. 'प,
प्रा