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॥ प्राकृतनियममाला
(२६९)
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॥ संधिना नियमो॥
सं०
(१) संस्कृतमां बे पदोनी जे संधि थाय छे ते प्राकृतमां विकल्प थाय छे.. ___सं० प्रा० सं० प्रा० विषमातपः विसमआयवों, दधीश्वरः दहिईसरो, विसमायवो
दहीसरो. (२) वर्ण अने उ. वर्णथी पर अस्वषर्णवालो स्वर आवे तो संधि न थाय. .
. प्रा० वन्देऽप्यजितम्, धन्दे वि अजिअं (३) ए, अने ओं, नी पछी कोइ पण स्वर आवे तोपण संधि थाय नहीं. • सं
प्रा० · आलक्ष्याम इदानीम्. आलक्खिमो एण्हि. . नखोल्लेखने आबध्नन्त्याः, नहुल्लिहणे आबंधतीइ.
(४) व्यञ्जन सहित जे स्वर होय अने तेमांथी व्यञ्जननो लोप थये . . . छते जे स्वर रहे तेनी पूर्वना स्वर साथे संधि न थाय, कोइ
ठेकाणे आ नियम विकल्पे लागेछे. .. सं० ग्रा०
सं० प्रा० . - निशाचरः, निसाअरो कुम्भकारः, कुम्भआरो रजनीचरः, रयणीअरो.
कुम्भारो, (५) ति, आदि पुरुषबोधक प्रत्ययनी , पछी स्वर आवे तो संधि
थाय नहि. . भवति इह, होइ हह. .. .
प्रा०