________________
कथावस्तु
दूत की बातों से महाराज बाहुबली अत्यन्त क्रुद्ध हो गए। उन्होंने भरत की जिष्णुता को चुनौती देते हुए कहा-'हाथी, घोड़े, रथ और सैनिक ये किसी को त्राण नहीं देते। आडम्बर केवल मूर्ख व्यक्तियों को ही विस्मित कर सकता है। मेरे जैसे वीराग्रणियों के लिए तो भुजाओं के प्रकम्पन ही अपेक्षित हैं।' बाहुबली के वचन सुनकर दूत कांप उठा। उसका उत्तरीय और पगड़ी दोनों नीचे गिर पड़े। दूत अपनी जान बचाकर भागा। मार्ग में उसने बाहुबली के सुभटों की वीरतापूर्ण वाणी सुनी। वह अपने स्वामी चक्रवर्ती भरत के देश की सीमा में प्रा पहुँचा। वहां का समूचा वातावरण भय से व्याप्त था । दूत अयोध्या आ पहुंचा । जनता उसकी बात सुनने के लिए एकत्रित हो गई। महाराज भरत आस्थान मंडप में बैठे थे। दूत ने वहां पहुंच कर महाराज भरत के पूछने पर सभी बात बताई। उसने सचोट वाणी में कहा—'आपके छोटे भाई बाहबली आपकी आज्ञा स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने मुझे तिरस्कृत कर बाहर निकाल दिया।' महाराज भरत ने दूत को धंयपूर्वक सुना और उसे उपहार देकर बिदा किया।