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________________ द्वितीयः सर्गः आप अपने सारे अहं को छोड़ कर ज्येष्ठभ्राता भरत को प्रणाम करने जाएँ। उनको नमन करने में,आप को कोई लज्जा नहीं होनी चाहिए। क्योंकि बड़े भाई को पिता की तरह प्रसन्न रखना चाहिए। ६६. एतावदुक्तवति भारतसार्वभौम संदेशहारिणि मुखं नृपतेर्बभार। फुल्लारविन्दसरसां श्रियमुद्यतेशी, पुण्योदयाञ्चितजनाप्यमुदग्रकीतः ॥ चक्रवर्ती भरत के संदेशवाहक के इतना कहने पर प्रचुर कीति के धनी महाराज बाहुबली का मुंह सूर्य के उदित होने पर विकसित कमलवाले सरोवर की शोभा धारण करने लगा अर्थात् लाल हो गया । ऐसा रक्तिम मुंह पुण्योदय वाले लोगों को ही प्राप्त होताहै। - इति दूतवाक्योपन्यासवर्णनो नाम द्वितीयः सर्गः
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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