SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयः सर्गः ३८. निस्वान निस्वान'भियास्य नष्टविरोधिभिानशिरे दिगन्ताः । तदीयसौधानविरूढदूर्वांकुरप्रलुब्धरुषितं कुरङ्गः ॥ महाराज भरत के वैरियों ने बाण की ध्वनि के निर्घोष से भयभीत होकर दिशाओं के छोरों की ओर पलायन कर दिया। अब उनके सूने घरों के ऊपर उगे हुए दूर्वा घास के अंकुरों को खाने में आसक्त मृग वहां निवास कर रहे हैं। ३६. विलोक्य यत् सैन्यहयावधूतं , रजो नवाम्भोधरराजिनीलम् । श्यामाननीभूय च राजहंसः' , पलायितं शुद्धपरिच्छदाढ्यः । महाराज भरत की सेना के घोड़ों के खुरों से उठे हुए नए मेघ की भांति नीले रजकण आकाश में व्या त हो गए। अच्छे परिवारों से सम्पन्न बड़े-बड़े राजाओं के मुंह भी उन रजकणों से काले हो गए और वे सब वहां से पलायन कर गए । ४०. अस्य प्रयाणेषु हयक्षुरामोद्धृत रजोभिर्मलिनीकृतानि । अद्रष्टुमर्हाणि मुखानि कैश्चिल्लात्वा गतं क्वापि भुवोन्तराले ॥ महाराज भरत की प्रयाण-वेला में घोड़ों के खुरों से उठे हुए रजकणों से कई राजाओं के मुंह इतने मलिन हो गए कि वे देखने योग्य नहीं रहे। वे अपना काला मुंह लेकर कहीं भूमि में पैठ गए। ४१. अनावृतं पश्यतु मा मुखाब्जमयं पतिर्नः प्रभुतोपपन्नः । इतीव रेणुच्छलतो हरिद्भिः, समाददे नीलपटी समन्तात् ॥ 'हमारा यह ऐश्वर्यशाली स्वामी हमारे मुख-कमल को अनावृत न देखले'-यह सोचकर दिशाओं ने रजकणों के व्याज से अपने मुंह पर काले उत्तरीय का घूघट डाल दिया। १. निस्वान' शब्द बाण की ध्वनि के अर्थ में प्रयुक्त होता है (देखें-प्राप्टे की डिक्शनरी qo833-farata –The whistling sound of an arrow (only निस्वान in this sense) पञ्जिका में निस्वान' का अर्थ 'वाद्य विशेष' किया है : निस्वाननिस्वानभिया-वाद्यविशेषनिर्घोषभीत्या-पत्र ८ । २. निरवान:-निर्घोष। ३. राजहंस' के दो अर्थ हैं-बड़े राजा तथा राजहंस पक्षी। ४. 'शद्धपरिच्छदाढय' के भी दो अर्थ हैं-अच्छे परिवारों से सम्पन्न तथा सफेद पांखों से सम्पन्न । राजा के पक्ष में पहला अर्थ तथा राजहंस के पक्ष में दूसरा अर्थ संगत होगा। ५. हरित्-दिशा (काष्ठाऽशा दिग् हरित् ककुप्-अभि० २।८०) ६. नीलपटी-श्यामोत्तरीयम्-काला उत्तरीय ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy