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सप्तदशः सर्गः
३४५ 'हे श्रीमन् !, हे भारत के अधिपति भरत ! आप इस संसार में पहले चक्रवर्ती हैं। आपने समूची पृथ्वी रूपी वधू का वरण कर लिया है। आप भारतवर्ष में चिरकाल तक राज्य करते रहें। आप अद्भुत चरण वाली लक्ष्मी से युक्त, ललित लावण्य के पुण्योदय वाले तथा उत्कृष्ट संपदा के भोक्ता हैं'-इस प्रकार देवताओं ने उनकी स्तुति की।
-इति भरतबाहुबलिद्वन्द्वयुद्धवर्णनो नाम सप्तदशः सर्गः
१. अत्यन्तं अद्भुतचारिणी च मा लक्ष्मीः च इति अत्यन्ताद्भुतचारिमा ।