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________________ कथावस्तु : चक्रवर्ती भरत प्रातःकालीन विधियों को सम्पन्न कर विशिष्ट आयुधों से सज्जित हुए। काव्यकार ने उनके आयुधों के विशिष्ट नामों का इस प्रकार उल्लेख किया है कवच का नाम था-जगज्जय। शिरस्त्राण का नाम था-गीर्वाणशृंगार। दो तूणीरों के नाम थे-जय और पराजय । धनुष्य का नाम था-त्रैलोक्यदंड । . खड्ग का नाम था-दैत्यदावानल। ' इसी प्रकार काव्यकार ने सेनापति सुषेण तथा भरत के ज्येष्ठ पुत्र सूर्ययशा के आयुधों का भी नामोल्लेखपूर्वक उल्लेख किया है। महाराज भरत अपने सवा कोटि पुत्रों तथा बत्तीस हजार राजाओं के साथ चल पड़े। उस समय दस-लाख युद्ध-वाद्य, अठारह लाख भेरियां और सोलह लाख नगाड़े बज रहे थे। महाराज भरत ने अपने मंगलपाठक वहस्पति को यह आदेश दिया कि वह शत्रु-सैनिकों के नाम, ध्वज-चिन्ह और यान के विषय में बताये । वृहस्पति ने बाहुबली की सेना के सुभटों का परिचय प्रस्तुत करते हुए उनके नाम, ध्वज-चिन्ह और यान का वर्णन किया । बाहुबली के तीन लाख पुत्र युद्ध के लिए सन्नद्ध होकर आए थे। बाहबली ने भी अपने मंत्री 'सुमंत्र' को शत्रु-सेना का परिचय प्रस्तुत करने के लिए कहा । मन्त्री ने उनके नाम, ध्वज-चिन्ह और वाहन का वर्णन किया। दोनों सज्जित सेनाएं रणभूमी में आ डटीं। सुभट युद्धारम्भ की प्रतीक्षा करने लगे।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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