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कथावस्तु
युद्ध की बात सुनकर सुभट प्रफुल्लित हो गए। सभी सुभट अपनेअपने कार्यों में संलग्न हो गए। कुछ सुभट देवताओं से विजय की याचना. करने लगे। कुछ ने ऋषभ को याद किया, कुछ ने अग्नि में आहुतियां दीं और कुछ शुभ शकुन की प्रतीक्षा करने लगे।
- महाराज बाहुबली भी युद्ध के लिए सज्जित होने लगे। उन्होंने युद्धोत्साह के रस से छलाछल, रोमांचित करने वाली और धैर्ययुक्त वाणी से अपने पराक्रमी पुत्रों, सुभटों और राजाओं को प्रेरणा दी।
उन्होंने कहा-'आप लोगों ने अभी तक किसी, युद्ध में भाग नहीं लिया है इसलिए आप उसकी व्यूह रचनाओं को नहीं जानते । मेरे पूत्र भी युद्ध से अनजान हैं । अच्छा यही है कि मैं स्वयं भरत से लड़कर उसे जीतूं। भरत में शक्ति और चक्र का गर्व है। मैं उस गर्व को चकनाचूर कर डालूंगा। मेरी भुजाएं उसे पछाड़ देंगी।' यह सुनकर पुत्र सिंहरथ ने कहा-'इतने सारे पूत्रों और राजाओं के होते हए भी यदि आप स्वयं युद्ध में जाएं तो हमारे लिए लज्जा की बात होगी। हमें भी अपना पराक्रम दिखाने का अवसर दें।' पुत्रों की वाणी से बाहुबलो प्रसन्न हुए और सिंहरथ को सेनापति बना दिया।
सुभटों ने रात को व्यवधान माना और वे सूर्योदय की प्रतीक्षा करने लगे। प्रभात हुआ। महाराज बाहुबली श्वेत वस्त्र पहन कर ऋषभ के चैत्य की ओर गए। भगवान की स्तुति की। स्तुति संपन्न कर वे चैत्य से बाहिर आए और आयुधों से सज्जित होकर भरत से पहले ही रणभूमी में आ
पहुंचे।