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________________ द्वादशः सर्गः २३१ १६. प्रपिनासीर हयक्षुरामोद्धतं रजश्चुम्बति यच्छिरांसि। तैरेव कोतिर्मलिनीकृता द्राक् , पयोदवातैरिव दर्पणाभा । 'आगे चलनेवाली शत्रुओं की सेना के घोड़ों के खुरों से उठे हुए रजकण जिन सुभटों के शिरों पर आ गिरते हैं, वे ही कीति को शीघ्र मलिन कर डालते हैं जैसे कि मेघ की सीलनभरी हवा से दर्पण की आभा मलिन हो जाती है।' २०. तधूयमुद्यच्छथ संप्रहारं', कर्तुं त्रिलोकीजनताभिवन्द्यम् । वीरा यमाकर्ण्य धरन्ति शौर्य , कराः खरांशोरिव चण्डिमानम् ॥ 'आप त्रिलोकी जनता के द्वारा स्तुत्य उस युद्ध के लिए उद्यत हो जाएं, जिसकी गाथा सुनकर वीर योद्धाओं का पराक्रम सूर्य की किरणों की भांति प्रचण्ड हो जाता है।' २१. षाड्गुण्य नैपुण्यभरं भजन्तु , सर्वे धनुर्वेदमनुस्मरन्तु । भवन्तु खड्गाप्रविहस्त हस्ता, भटा ! भवन्तः श्रमयन्तु बाहून् । 'हे वीर सुभटो | आप छह गुणों-सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैध (भेदनीति) और आश्रय-की निपुणता को धारण करें और सभी धनुर्वेद का अनुस्मरण करें। आप • १. प्रत्यर्थी- शत्रु (प्रत्यर्थ्यमित्रावभिमात्यराती-अभि० ३।३६३) २. नासीरं-आगे चलनेवाली सेना (नासीरं त्वग्रयानं स्यात्--अभि० ३।४६४) ३. संप्रहार:-- युद्ध (संग्रामाहवसंप्रहारसमरा:-अभि० ३।४६०) ४. षाड्गुण्य-राजनीति के छह गुण । वे ये हैं १. सन्धि-कर देना स्वीकार कर या उपहार आदि देकर शत्रुपक्ष से मेल करना । २. विग्रह-अपने राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में जाकर युद्ध, दाह आदि करते हुए विरोध करना। ३. यान-चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करना। ४. आसन-शत्रुपक्ष से युद्ध नहीं करते हुए अपने दुर्ग या सुरक्षित स्थान में चुपचाप बैठ जाना। ५. द्वैध–एक राजा के साथ सन्धिकर अन्यत्र यात्रा करना, अथवा दो बलवान् शत्रुनों में वचनमान से आत्मसमर्पण करते हुए दोनों पक्षों का (कभी एक पक्ष का कभी दूसरे 'पक्ष का) गुप्त रूप से आश्रय करना। ६. आश्रय-बलवान् शत्रु से युद्ध करने में स्वयं समर्थ नहीं होने पर किसी दूसरे अधिक बलवान् राजा का आश्रय करना। (अभिधान चिन्तामणि ३।३६६ पृ० १८०,१८१) ५. विहस्त:-व्याकुल (विहस्तव्याकुलो व्यग्रे-अभि० ३।३०)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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