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कथावस्तु —
गुप्तचर लौटकर आ गए। द्वारपाल ने महाराज भरत को इसकी सूचना दी। गुप्तचर आस्थान मंडप में गए । महाराज भरत ने पूछा'बताओ ! मेरा भाई बाहुबली नत होना चाहता है या युद्ध लड़ना ?' तब गुप्तचरों में से एक निपुण गुप्तचर ने कहा - 'महाराज ! बाहुबली के नत होने की बात ही कहां है । वे तो युद्ध के लिए समुत्सुक हैं । उनके वीर सुभटों में भी अपार उत्साह है । सब युद्ध की तैयारी में लगे हुए हैं। वहां की नारियां भी अपने पुरुष सुभटों के पराक्रम रूपी अग्नि को उद्दिप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं । राजन् ! आपके सभी शत्रु राजे उनसे जा मिले हैं । विद्याधरों का स्वामी रत्नारि भी बाहुबली के पास आ गया है । बाहुबली का प्रधानमन्त्री 'सुमंत्र' अत्यन्त बुद्धिशाली है । उसने बाहुबली को युद्ध न लड़ने की सलाह दी है । किन्तु आपके अनुज किसी की बात मानने के लिए तैयार नहीं हैं । वे आपको रणभूमि में मिलने ही वाले हैं ।'
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महाराज भरत ने गुप्तचरों की बात सुनी और मन ही मन सोचा - मेरा भाई कैसा मूढ है । वह मेरे आगे कैसे टिक पाएगा ! कहां तो मैं छह भूखण्डों का स्वामी चक्रवर्ती और कहां वह एक भूभाग का सामन्त ! कहां सूर्य और कहां एक छोटा सा टिमटिमाता तारा !
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