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________________ कथावस्तु — चक्रवर्त्ती भरत की सेना बाहुबली की सीमा में प्रविष्ट हुई। महाराज भरत नदी के तट पर स्थित कानन में गए । मन्दिर को देख वे हाथी से नीचे उतर गए । उन्होंने सारी उत्तरासंग विधि सम्पन्न कर मन्दिर में प्रवेश किया। तीन बार प्रदक्षिणा कर, पंचांग नमस्कार कर उन्होंने भगवान् ऋषभ की स्तुति की। वे रमणीय स्थानों को देखते हुए मन्दिर घूम रहे थे। इतने में ही उन्होंने एक मुनि को ध्यानस्थ अवस्था में देखा । उन्होंने मुनि को पहचान लिया। मुनि ने आँखें खोली । महाराज भरत ने मुनि की स्तुति करते हुए पूछा - 'मुने ! आपने दीक्षा क्यों ली ? आपके शान्त रस का कारण क्या है ? आप यहाँ क्यों आए हैं ?" में मुनि ने कहा - 'महाराज भरत ! तुम्हारे साथ युद्ध लड़ने के बाद हम ( मैं नमि और विनमि) विरक्त हो गए। हम तीनों ने अपना-अपना राज्यभार पुत्रों को सौंप प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । हम भगवान् ऋषभ के चरणों में संयम जीवन यापन करने लगे । राजन् ! भगवान् की अनुज्ञा पाकर मैं तीर्थाटन करने निकला हूं । तीर्थयात्रा कर मैं पुनः वहीं चला जाऊँगा - इतना कहकर मुनि मौन हो गए। महाराज भरत ने कहा - 'मुने ! आप भगवान् ऋषभ के चरणों में मेरा वन्दन निवेदित करें ।' महाराज भरत चैत्य से अपने निवास स्थान पर आ गए और गुप्तचरों की प्रतीक्षा करने लगे । उन्होंने वहाँ कई दिन बिताए । ००
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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