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________________ कथावस्तु भरत की अंगनाओं के केशों से पानी की बूदें टपक रही थीं। उस समय ऐसा लग रहा था मानो सरोवर के तट पर मोती बिखर रहे हों। राजा ने वहां कुछ विश्राम किया। सूर्य अस्ताचल की ओर तीव्र गति से बढ़ रहा था। सूर्य अस्त हो गया। चांद अभी उदित नहीं हुआ था। चारों अोर अन्धकार फैलता जा रहा था। राजा वहां से चलकर अपने पड़ाव पर आ पहुंचा। अंगनाएं अपने-अपने पटगृह में चली गईं। वे पटगंह रत्नदीपों से जगमगा रहे थे। महाराज भरत भी समयोपयुक्त वेश पहनकर पटगृह में गए। अन्यान्य राजे भी अपनी-अपनी कान्ताओं से क्रीडा करने के लिए पटगृह में चले गए। नाना प्रकार से अपने पतियों को रिझाती हुई कामिनियां पटगृहों में आनन्दित हो रही थीं। परस्पर मिलने से होने वाले रसातिरेक से दम्पतियों ने बीतने वाले समय को सुधामय, सुखमय, प्रमोदमय, कामदेवमय और एकतान माना। चाँद उगा। चाँदनी का विस्तार हुआ। सास संसार सफेद सा प्रतीत होने लगा। प्रातःकाल हुआ जानकर कुछ सैनिक जागृत हो गए। हस्तिपाल और अश्वपाल अपने-अपने हाथी-घोड़ों को खोजने लगे । अनेक वर्ण वाले हाथी-घोड़े एक सफेद वर्ण के हो जाने के कारण उनमें भ्रम उत्पन्न होना स्वाभाविक सा था । वे परस्पर विवाद करने लगे। सेना ने वहां से प्रस्थान किया। सेना की टुकड़ियों के सेनापति आगेआगे चलने लगे। उनके वेष भिन्न भिन्न थे। चतुरंग सेना के प्रयाण से अपूर्व कोलाहल होने लगा। हाथियों के चिंघाड़, घोड़ों की हिनहिनाहट और रथों के चीत्कार से सारा भू-आकाश ध्वनित हो उठा। सूर्योदय हुआ। महाराज भरत ने वहां से प्रयाण किया। कई राजे अपनी पत्नियों को साथ लेकर और कई राजे उन्हें वहीं छोड़कर भरत के साथ-साथ चल पड़े। भरत श्वेत हाथी पर आरूढ थे । शेष राजे घोड़ों और रथों पर आसीन थे।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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