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________________ १४ - इसमें अठारह सर्ग हैं। सर्ग के अन्तिम श्लोक का छन्द उसके मुख्य छन्द से भिन्न है । इसमें वीर रस प्रधान और शेष रस गौण हैं। इन लक्षणों से इसे खण्डकाव्य की कोटि में भी नहीं रखा जा सकता । इन दोनों लक्षणों की समन्विति के कारण इसे कोई तीसरी संज्ञा दी जा सकती है। इसमें एक प्रयोजन की सिद्धि के लिए रचना का प्रबन्ध है इस दृष्टि से इसे विशुद्ध अर्थ में एकार्थ काव्य या काव्य कहना चाहिए। . भाषा की दृष्टि से ___ काव्य-सौष्ठव के पद-लालित्य और अर्थ की रमणीयता-ये दो प्राथमिक अंग हैं । प्रस्तुत काव्य यद्यपि रीतिबद्ध है फिर भी उसमें काव्य सम्बन्धी रूढियों की जकडन नहीं है। इसमें कवि ने अपने स्वाभाविक प्रतिभा का उपयोग किया है। फलतः इसमें स्वाभाविकता और कलात्मकता-दोनों एक साथ परिलक्षित होते हैं। इसमें भाषा की जटिलता नहीं है। ललित पदावलि में सरलता से गुंफित अर्थ पाठक के मन को मोह लेता है । पद-लालित्य और स्वाभाविक शब्दरचना की दृष्टि से निदर्शन के रूप में ये श्लोक प्रस्तुत किए जा सकते हैं पुरा चर ! भ्रातरमन्तरेण, शशक न स्थातुमहं मुहूर्तम् । ममाऽधुनोपोष्यत एव दृष्ट्या, व्यस्तितो मे दिवसाःप्रयान्ति ॥ (२०१३) सा प्रीतिरङ्गीक्रियते मया नो, जायेत यस्यां किल विप्रयोगः। जिजीविवावां यदि विप्रयुक्तौ, प्रीतिर्न रीतिहि विभावनीया ॥ (२०१४) आडम्बरो हि बालानां, विस्मापयति मानसम् । मादृशां वीरधुर्याणां, भुजविस्फूर्तयः पुनः॥ (३।२६) देव ! चन्द्रति यशो भवदीयं, सांप्रतं क्षितिभुजामितरेषाम् । तारकन्ति च यशांसि कृतित्वं, तत्तवैव न हि यत्र कलङ्कः ॥.(६।४७) प्रस्तुत काव्य की भाषा जैसे गरिमापूर्ण है वैसे ही इसमें अर्थ-गौरव भी है ! कवि ने कुछ प्रसंगों में बहुत ही मार्मिक व्यंजना की है। भरत ने बाहुबली से कहलाया भवतात् तटिनीश्वरोन्तरा, विषमोऽस्तु क्षितिमृच्चयोन्तरा। सरिदस्तु जलाधिकान्तरा, पिशुनो माऽस्तु किलान्तरावयोः । (४।१५) कहीं कहीं विस्तार के कारण अर्थ की श्लथता भी आई है । जैसेप्रणयस्तटिनीश्वरादिकः, पतितैरन्तरयं न हीयते । पिशुनेन विहीयते क्षणादधिकः सिन्धुवराद्धि मत्सरी ॥ (४।१६) इस श्लोक में कोई नया अर्थ प्रतिपादित नहीं है, केवल पूर्वोक्त श्लोक (४।१५) की व्याख्या या विस्तार-मात्र है। पूर्व श्लोक में जो अर्थ का चमत्कार है वह इसमें
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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