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________________ ८६ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् महाराज भरत ! जैसे बादल कृषक को प्रबुद्ध करता है, वैसे ही दूत-संप्रेषण रूप गजित शब्दों से आपने बाहुबली को युद्ध रूपी कृषि के लिए पहले ही क्यों प्रबुद्ध कर डाला है ? ७२. अधुनास्य मनोवनान्तरेऽभिनिवेशाग्निरुदच्छलत्तराम् । तव राष्ट्रपुरद्रुमोच्चयं , परिदग्धुं किल कस्तदन्तरा? .. देव ! आज बाहुबली के मन रूपी वन में आग्रह की अग्नि अत्यधिक प्रदीप्त हो रही है। वह आपके राष्ट्र और नगर रूपी वृक्ष समूह को जलाने के लिए तत्पर है। उसके बीच में कौन आएगा? ७३. .त्यज तत्त्वममदगृहनं , कुरु युद्धाय मनो महीपते!। . कलिरेव महीभुजां स्थितिविजयश्रीवरणाय सत्तमा ॥.. देव ! आप इस प्रकार की वितर्कणा को छोड़ दें। आप युद्ध के लिए मन करें। विजयश्री का वरण करने के लिए युद्ध ही राजाओं की श्रेष्ठ मर्यादा है। ७४. रथपत्तितुरङ्गसिन्धुरक्षुरतालोद्धतरेणुभिस्त्वया।. सविता समयेऽपि नीयतेऽस्तमयं तस्य च का विचारणा ? देव ! रथों, पैदल सैनिकों, घोडों और हाथियों के खुरों से उठे हुए रजःकणों से आप दिन में भी (समय के रहते हुए भी) सूर्य को अस्तंगत कर देते हैं। तो उस बाहुबली के लिए फिर विचार ही क्या है ? ७५. नृपते ! ऽस्य जयः सुवुर्लभो , न विभाव्यो भवता रथाङ्गतः। दनुजारिमणिप्रभावतो , न हि दारिद्रपराभवः किमु ? महाराज ! चक्र से भी इस पर विजय पाना कठिन है, यह आप न सोचें । क्या इन्द्रमणि (चिन्तामणि) के प्रभाव से दारिद्र्य का नाश नही हो जाता? ७६. भवदीययशोध्वगामिनो , भवतात् संचरणं यदृच्छया । जगति प्रतिपक्षपर्वतप्रतिघाताद् हरिदन्तगाहिनः ॥ देव ! आपका यश रूपी पथिक शत्रु रूपी पर्वतों को विध्वस्त कर दिशाओं के अन्त तक १. दनुजारिमणि:-दनुजानां अरि: शत्रुः--इंद्रः, तस्य मणि:-इन्द्र मणि : चिन्तामणिः ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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