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अध्याय २
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है।' सम्यक्त्व धर्म की आराधना करने वाली अहिंसा को “सम्मत्ताराहणा" से संबोधित किया है।
यह जो ब्रह्मचर्य व्रत है वह उत्तम अनशनादि तप, नियम, ज्ञान, दर्शन चारित्र सम्यक्त्व और विनय का मूल है।' ... यहाँ दर्शन और सम्यक्त्व का प्रयोग एक साथ किया है। तब दर्शन शब्द ज्ञानमूलक है सम्यक्त्वमूलक नहीं। ___ “सम्यक्त्व अपरिग्रह का. मूल है" उस का उल्लेख है
जो अपरिग्रह श्री महावीर के वचन से की हुई परिग्रह-निवृत्ति के विस्तार से जो वृक्ष अनेक प्रकार का है, सम्यक्त्व रूप निर्दोष मूल वाला है।
इस सूत्र में सम्यक्त्व के गुण और अतिचार का किंचित् उल्लेख प्राप्त होता है । विरति के मूल में सम्यक्त्व अनिवार्य है, यह यहाँ पुनः स्पष्ट होता है।
अन्तकृशांग सूत्र और विपाक सूत्र में "श्रद्धा उत्पन्न हुई" इतना ही उल्लेख है. अन्य नहीं ।
___(८) आवश्यक नियुक्ति-विशेषावश्यक आवश्यक नियुक्ति
. जैन आगमों की प्राचीन टीकाओं में उपलब्ध नियुक्ति का स्थान है । उपलब्ध नियुक्तियों में प्राचीनतम नियुक्तियों का समावेश हो गया है। आचार्य भद्रबाहू का समय मान्यवर मुनिश्री पुण्यविजयजी ने १-२- तृ० आश्रव द्वार, पृ० ११०, अनु० हस्तिमल मुनि । ३. "एत्तो य बंभचेरं उत्तमतव-णियम-णाण-दंसण-चरित्त-सम्मत्त
विणय मूलं ।" वही, पृ० १५ ॥ ४. जो सो वीरवरवयण-विरतिपवित्थर बहुविहप्पकारो सम्मत्त-विसुद्ध मूलो धितिकंदो वही, पंचम संवरद्वार ।।