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जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप जीवन में उपयोग होना, नियमबद्ध होकर पालन करना सम्यक् सिद्धांत का पालन करना है । जीवन को सुव्यवस्थित रूप से, सुचारु रूप से प्रतिपादन करने में, उत्तरोत्तर आत्मिक गुणों के विकास में सम्यक्त्व ही सहायक है।
मुमुक्षु के लिए सम्यक्त्व को जानना, उसे हृदयंगम करना आवश्यक है । क्योंकि मुमुक्षु ही सम्यक्त्व को ग्रहण कर सकता है अन्य नहीं। सिंहनी का दुग्ध तो स्वर्णपात्र ही ग्रहण कर सकता है, अन्य धातु के पात्र नहीं ।