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अध्याय ३
२३७ जीवन के प्रति ही एक दृष्टिकोण हो जाता है। अहिंसा-अनेकांत और अनासक्त जीवन जीने रूप में जीवन की कला इससे प्राप्त होती है। चूंकि जीवनदृष्टि के अनुसार ही व्यक्तित्व व चरित्र का निर्माण होता है । दृष्टि के अनुसार ही जीवन सृष्टि निर्मित होती है ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है । अतः यह अपने आप पर निर्भर है कि हमकों जैसा बनना है उसी के अनुरूप हम अपनी जीवनदृष्टि बनाये । क्योंकि जैसी दृष्टि होती है वैसा ही उसके जीवन जीने का ढंग होता है और जैसा उसके जीने का ढंग होता है, उसी स्तर से उसके चरित्र का निर्माण होता है और चरित्र के अनुसार ही उसके व्यक्तित्व में प्रतिभा आती है । अतः यथार्थ दृष्टिकोण होना जीवन निर्माण की दिशा में आवश्यकीय है। जीवन में सम्यक्त्व की उपयोगिता
सैद्धान्तिक अपेक्षा से आध्यात्मिक विकास में सम्यक्तव महत्त्वपूर्ण है ही किंतु व्यावहारिक. जीवन में भी सम्यक्तव अत्यंत उपयोगी है। • सामाजिक क्षेत्र हो या पारिवारिक क्षेत्र हो, राजनैतिक क्षेत्र हो या आर्थिक . क्षेत्र हो, धार्मिक क्षेत्र हो या नैतिक क्षेत्र हो, हर क्षेत्र में सम्यक्तव उपयोगी है । क्योंकि सही दृष्टि सही दिशा की ओर ले जाती है । फलतः मंजिल तक पहुंचा देती है किन्तु गलत राह पर जाने वाला
भटक जाता है सही राह वाला नहीं । . सामाजिक क्षेत्र में, पारिवारिक क्षेत्र में तथा उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में जीवन के आदर्शों के साथ परस्पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना, सम्यक रीति से जीवन व्यतीत करना है। राजनैतिक व्यवस्था सम्यक् न होगी तो राष्ट्र में भ्रष्टाचार बढ़ता ही जावेगा, फलतः राष्ट्र का अनैतिक्ता के कारण पतन हो जायगा । धार्मिक व नैतिक क्षेत्र में तो स्पष्ट रूप से ही सम्यक्तव की छाप दृष्टिगोचर होती है । धार्मिक सिद्धांतों का व्यावहारिक जीवन में उपयोग होना ही सम्यक्त्व है । यह शाश्वत सिद्धांत है कि “ सदा सत्य बोलो" उसका व्यावहारिक