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अध्याय-३
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रामानुज के अनुसार कर्म और ज्ञान से ही भक्ति का उदय होता है उसके परिणामस्वरूप मुक्ति प्राप्त होती है । कर्म से तात्पर्य वेदोक्त कर्मकाण्ड । इन कर्मों का अनुष्ठान जीवनपर्यन्त कर्त्तव्यबुद्धि से करना चाहिये। इन निष्काम कर्मों से ज्ञान प्राप्ति में विघ्नरूप जो पूर्वजन्म के संस्कार हैं, वे दूर हो जाते हैं । मुक्ति के साधन रूप में उपासनात्मक भक्ति को ही अतिआवश्यक स्वीकार करते हैं।'
. ब्रह्मात्मैक ज्ञान से अविद्या की निवृत्ति नहीं होती। क्योंकि जहाँ बंधन पारमार्थिक हैं वहाँ इस प्रकार के ज्ञान से उसकी निवृत्ति कैसे हो १ अतः .रामानुज स्वीकार करते हैं कि भक्ति के द्वारा भगवान् प्रसन्न होकर मुक्ति प्रदान करते हैं। रामानुज सेश्वरवादी होने से उनके मत में भक्ति और ईश्वरकृपा से ही मुक्ति प्राप्त हो सकती है। ___ मध्वाचार्य आदि द्वैतवादी के अनुसार-बन्धन यह यथार्थ रूप से ज्ञान मात्र द्वारा नहीं किंतु ईश्वरप्रसाद द्वारा ही दूर हो सकता है । उनके मतानुसार भक्ति का स्थान ज्ञान की तुलना में अति उच्च है और ज्ञान तो भक्ति की तुलना में अतिगौण है । जब भक्ति द्वारा तथा : ईश्वर के ज्ञान द्वारा भक्त ईश्वरकृपा प्राप्त करने में शक्तिमान होता है
तब ईश्वर की कृपा से ही वह विश्व की माया के पजे से मुक्त हो सकता है ।
. निम्बार्क ज्ञान के पांच साधन स्वीकार करते हैं-१. कर्म, २. विद्या या ज्ञान, ३. उपासना, ४. प्रपत्ति-ईश्वर को आत्मसमर्पण, ५. गुरुपासत्ति-गुरु को आत्मसमर्पण ।
___ वल्लभाचार्य अपने " निबन्ध" में मोक्ष प्राप्ति के लिए पांच १. भक्ति प्रपत्तिभ्याम् प्रसन्न ईश्वर एव मोक्ष ददाति । श्री भाष्य अ०४,
पा०४॥ २. यतो नारायण प्रसादामृते न मोक्षः न च शानं बिना अत्यार्थप्रसादः । ब्रसू०. माध्वभाष्य ।।