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________________ अध्याय.२ १०५ ग्रंथिभेद के पश्चात् जो सम्यक्त्व प्राप्त होता है वह तीन प्रकार का है-उपशमादि तीन अथवा कारक रोचक और दीपक आदि ।' अब ग्रंथकर्ता सम्यक्त्व के प्रकारों का विवेचन करते हैं जो मिथ्यात्व उदय में आया हो उसे क्षीण किया हो और जो उदय में नहीं आया हो उसका शमन किया हो ऐसा मिश्रभाव में परिणमन किया हुआ हो। तथा प्रदेश से मिथ्यात्व के दलिकों का वेदन किया जाता हो वह क्षयोपशम सम्यक्त्व है।' उपशम श्रेणी में चढ़ा हुआ जीव उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करता है अथवा जिस जीव ने तीन पुज किये नहीं हो और जिसके मिथ्यात्व का क्षय नहीं हुआ वह जो सम्यक्त्व प्राप्त करता है उसे उपशम सम्यक्त्व कहते हैं । अथवा जिसका उदय में आया हुआ मिथ्यात्व क्षीण हो गया हो और शेष मिथ्यात्व जिसका उदय में आया न हो उस जीव को सिर्फ अन्तर्मुहूर्त तक उपशम सम्यक् व होता है। जिस प्रकार दावानल जब जली हुई क्षार वाली भूमि पर पहुँच कर नष्ट हो जाता है उसी प्रकार मिथ्यात्व का उदय • नहीं होने से जीव उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। • जीवस्त । इवइ हु अभिन्नपुटवो गंठी एवं जिणा बिति । ३२ ॥ भिन्नंमि मि लाभो जायइ परमपयहे उणो नियमा। सम्मत्तस्स . पुणो तं बंधेण न बोलई कयावि । ३३ ॥ वही० १. संमत्तं पि य तिविहं खओवसमियं तहोवसमियं च । .. खइयं च कारगाइ व पन्नतं वीयरागेहिं । वही, ४३ ॥ . २. मिच्छत्तं जसुदिन्न तं खीणं अणुइयं च उपसंतं । मीसीभावपरिणयं वेयिज्जतं खओवसमं । श्रा० प्र० ४४ ॥ ३. उवसमगसे ढिगयस्स होइ उवसामियं तु सम्मत्तं । जो वा अकयतिपुंजो अखवियमिच्छो लहइ सम्मं । वही, ४५ ॥ खीणंमि उइन्नंमि अ अणुइजंते अ सेसमिच्छत्ते । अंतोमहत्तमित्तं उवसमसम्म लहइ जीवो। ४६॥ वही उसरदेसं दढिल्लयं व विज्झाइ वणदवो पप्प।। इय मिच्छस्साणुदए उवसमसम्म लहइ जीवो। ४७ ॥ वही
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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