SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आशीर्वचन .." सानोति स्व पर कार्यमिति साधु"-'स्वान्त सुखाय-परजन हिताय' इसी अर्थ को लेकर साधु शब्द की व्युत्पत्ति हुई है । शानोपासना स्वोत्थान और परोपकार के लिए अत्यावश्यक है। इसी लक्ष्य को केन्द्रित करते हुए साध्वी सुरेखा श्री जी ने स्वयं के लिए एवं जन मानस को आत्मोन्मुख बनाने के लिए " जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप” विषय पर पी-एच. डी. की है। विषय का तलस्पर्शी एवं सूक्ष्म ज्ञानार्जन के लिए लक्ष्य का निर्धारण आवश्यक है। इसी हेतु से साध्वीजी ने पी-एच. डी. करने का निर्णय किया। अध्ययन रत रहने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसमें भी श्रमण जीवन तो संघर्ष से परिपूर्ण होता है । किन्तु जो अपना लक्ष्य अध्ययन करना ही बना लेता है, उसे सफलता अवश्य मिलती है। __साध्वी जी ने अपना अध्ययन का दायरा. सीमित न रखकर तटस्थ भाव से जैन-जनेतर सभी ग्रन्थों का विशाल पैमाने पर तुलनात्मक, अध्ययन किया है। सुरेखा. श्री जी ! सम्यक्त्व के अध्ययन के साथ साथ अपने जीवन में सम्यक्त्व प्राप्त करे यही मेरी हार्दिक शुभकामना तथा आन्तरिक आशीर्वाद है । ४-१-८८ ) गुरु विचक्षण पदरेणू अहमदाबाद में मनोहर श्री-मुक्तिप्रभा श्री . . .S . ..
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy