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________________ ____महाकवि स्वयंभू अपभ्रंश का आदिकवि कहा जा सकता है। इसके बाद महाकवि रइधू तक कई महाकवियों ने इस भाषा को समृद्ध किया है। अपभ्रंश भाषा प्राकृत भाषा के विकास की तीसरी अवस्था मानी जाती है। ईसा की छठी शताब्दी से लगभग बारहवीं शताब्दी तक अपभ्रंश का उत्कर्ष युग रहा। इस बीच प्राकृत भाषाओं में भी काव्य लिखे जाते रहे, किन्तु जनबोली के रूप में अपभ्रंश प्रयुक्त होती रही। इस तरह एक ही समय में समानान्तर रूप से प्रचलित इन दोनों भाषाओं में कई समानताएँ एकत्र होती रहीं। भाषा के सरलीकरण की प्रवृत्ति को अपभ्रंश ने प्राकृत से ग्रहण किया और कई शब्द तथा व्याकरणात्मक विशेषताएँ भी उसने ग्रहण की। इन सब प्रवृत्तियों को अपभ्रंश ने अपनी अंतिम अवस्था में क्षेत्रीय भाषाओं को सौंप दिया। इस तरह अपभ्रंश भाषा का महत्त्व प्राकृत और. आधुनिक भारतीय भाषाओं के आपसी सम्बन्ध को जानने के लिए आवयश्क अर्थ घडइ प्राकृत और आधुनिक भाषाएँ भारतीय आधुनिक भाषाओं का जन्म उन विभिन्न लोकभाषाओं से हुआ है, जो प्राकृत व अपभ्रंश से प्रभावित थीं, अतः स्वाभाविक रूप से ये भाषाएँ प्राकृत व अपभ्रंश से कई बातों में समानता रखती हैं। व्याकरणात्मक संरचना और काव्यात्मक विधाओं का अधिकांश भाग प्राकृत की प्रवृत्तियों पर आधारित है। इसके अतिरिक्त शब्द समूह की समानता भी ध्यान देने योग्य है। कुछ प्रमुख भाषाओं के उदाहरण यहाँ द्रष्टव्य हैंराजस्थानी · . प्राकृत राजस्थानी बनाता है जाचइ जाचै मांगता है खण्डइ तोड़ता है धारइ धारता है बीहइ किया होसइ जोहर जोहर बलिदान कउण कुण कौन सीक - सीक विदाई 1001 खांडे डरता है कीदो होगा १. पउमचरिउ की भूमिका- डॉ. एच. सी. भायाणी अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध-प्रवृत्तियाँ-डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री द्रष्टव्य-प्रासीडिंग्स् आफ द सेमिनार इन प्राकृत स्टडीज-सं. आर. एन. डाण्डेकर द्रष्टव्य-लेखक की “प्राकृत अपभ्रंश तथा अन्य भारतीय भाषाएँ” नामक पुस्तक ३. ४. [१३]
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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