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४. द्विगु समास.
प्रथम पद यदि संख्यासूचक हो तो उसे द्विगु समास कहते हैं। यथातिलोग
तिण्हं लोगाणं समूहो (तीन लोकों का समूह)। चउक्कसायं
चउण्हं कसायाणां समूहो (चार कषायों का समूह)। नवक्तं
नवण्हं तत्ताणं समाहारो (नव तत्त्वों का समूह)। ५. द्वन्द्व समास
दो या दो से अधिक संज्ञाएँ जब एक साथ जोड़े के रूप में प्रयुक्त हो तो उसे 'द्वन्द्व समास कहते हैं। यथापुण्णपावाई = पुण्णं अ पावं अ (पुण्य और पाप)। पिअरा
= माअं अ पिआ अ (माता और पिता)। सुहदुक्खाइं = सुहं अ दुक्खं अ (सुख और दुःख)। णाणदंसणचरितं
णाणं अ दसणं अ चरितं अ
(ज्ञान, दर्शन और चारित्र)। ६. बहुव्रीहि समास .
जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य का विशेषण बनते हों तो उस समास को बहुव्रीहि कहते हैं। यथापीआंबरो . = पीअं अंबरं जस्स सो (पीला है वस्त्र जिसका, वह)। अपुत्तो .. = नत्थि पुत्तो जस्स सो (नहीं है पुत्र जिसका, वह)। सफलं ..
= फलेण सह (फल के साथ.)। निलज्जो = निग्गया लज्जा जस्स सो (निकल गयी है लज्जा
जिसकी वह)। . जिअकामो = जिओ कामो जेण सो (जीता है काम को जिसने, वह)। उदाहरण वाक्य : - अणुभोयणं ते पढन्ति
भोजन के बाद वे पढ़ते हैं। गुणसम्पण्णो णिवो सासइ
गुण सम्पन्न राजा शासन करता है। सो देवमंदिरे ण गच्छइ
वह देवता के मंदिर में नहीं जाता है। रत्तपीअं वत्थं कस्स घरे अत्यि = लाल और पीला वस्त्र यहाँ नहीं है। चंदमुही कन्ना कस्स घरे अस्थि = चंद्रमा के समान मुखवाली कन्या
किसके घर में है? महावीरो तिलोयं जाणइ
महावीर तीनों लोकों को जानता है। पुण्णपावाणि बंधस्स
पुण्य और पाप बंध के कारण हैं। कारणाणि संति पीआंबरो तत्थ णच्च
पीले वस्त्र वाला वहाँ नाचता है।
खण्ड १
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