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________________ पाठ समास निर्देश : थोड़े शब्दों में अधिक अर्थ बतलाने वाली प्रक्रिया को समास कहते हैं । समास के प्रयोग से वाक्य रचना में सौन्दर्य आ जाता है । प्राकृत में सरल समासों का प्रयोग अधिक हुआ है। प्राकृत वैयाकरणों ने समास के लिए कोई नियम नहीं बनाये हैं । अतः प्रयोग के अनुसार प्राकृत के समासों को समझना चाहिए। समास के छह भेद निम्न प्रकार हैं । 1. अव्ययीभाव समास जिसमें पूर्वपद के अर्थ की प्रधानता हो तथा अव्ययों के साथ जिसका प्रयोग हो वह अव्ययीभाव समास है । यथा गुरुणो समीवं (गुरु के पास) । भोयणस्स पच्छा (भोजन के बाद ) । उवगुरु अणुभ पइदिणं अणुरुवं 2. तत्पुरुष समास १३८ 3. कर्मधारय समास ष. वि-देवमंदिरं स. वि-कलाकुसलो = = = चन्दमुहं जिणेंदो संजमधणं असच्च = = जिसमें उत्तरपद के अर्थ की प्रधानता होती है तथा पूर्वपद से विभक्तियों का लोप होता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। यथा द्वि. वि. - सुह तृ. वि-गुणसम्प च. वि-बहुि पं. वि चोरभयं = = = विशेषण और विशेष्य के समास कर्मधारय समास कहलाते हैं । यथा महावीरो महन्तो सो वीरो (महान् वीर) । पी अवत्थं पीअं तं वत्थं (पीला वस्त्र ) । रतपीअं रत्तं अपीअं अ (लाल और पीला) । = = = ८८ = दिणं दिणं पड़ (दिन के बाद दिन) रूवस्स जोग्गं (रूप के समान) । • = = सुहं पत्तो (सुख को प्राप्त) । गुणेहि सम्पणो (गुणों से सम्पन्न) । बहुजणस्स हितो (सब जुनों के लिए हित ) । चोरतो भीओ (चोर से डरा हुआ) । देवस्स मंदिरं (देव का मंदिर) । कलासु कुसलो (कलाओं में कुशल) । चंदो व्व मुहं (चंद्र की तरह मुख ) । जिणो इंदो इव (जन इन्द्र की तरह) । संजमो एवं धणं (संयम ही है धन ) । सच्चं (सत्य नहीं है)। प्राकृत स्वयं-शिक्षक
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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