SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरे लिए मुझ में तुम तुमको (ग) समान अव्यय यहाँ 可响西可强可旋阿阿 अथवा नहीं मारता है दह दह पाहि नमस्कार कया कब आणिं इस समय दाणि जहि जहाँ जहि (घ) समान क्रियारूप . हनति हनति, हणइ भेदति भेदन करता है भेदति मरते मरता है मरते गच्छहि जाओ गच्छहि जलाओ पाहि पिओ करना चर चलना - मुंच छोड़ना ... इसी तरह प्राकृत एवं वैदिक भाषा के संधि रूपों में भी कई समानताएँ देखने को मिलती है। कृदन्त दोनों में समान हैं। इस तरह ये कुछ नमूने के तौर पर वे विशेषताएँ हैं, जिनकी ओर विद्वानों की दृष्टि जानी चाहिए। इससे यह स्पष्ट है कि वैदिक भाषा और प्राकृत किसी एक मूल जनभाषा के धरातल पर ही आगे चलकर 'विकसित हुई हैं। किसी एक भाषा को भी पूरी तरह समझने के लिए दूसरी भाषा का ज्ञान करना आवश्यक है। अतः प्राकृत भाषा का अध्ययन और पठन-पाठन प्राचीन भारतीय आर्यभाषा वैदिक भाषा के लिए कितना उपयोगी है, यह स्वयं समझा कर कर चर मुंच जा सकता है। प्राकृत भाषा के व्याकरण सम्बन्धी नियम स्वतंत्र आधार को लिये हुए हैं तथा जन-भाषा में प्रयोगों की बहुलता को भी उसने सुरक्षित रखा है। प्राकृत ने अपने इन्हीं तत्त्वों के अनुरूप कुछ ऐसे नियम निश्चित कर लिये, जिनसे वह किसी भी भाषा के शब्दों को प्राकृत रूप देकर अपने में सम्मिलित कर सकती है। यही प्राकृत भाषा की सजीवता और सर्वग्राह्यता कही जा सकती है। इसी प्रवृत्ति का प्रयोग करते हुए प्राकृत कवियों ने अपने काव्य साहित्य को विभिन्न शब्द-भण्डारों से समृद्ध किया है कोई भी प्रवाहमान [७]
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy