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________________ सं.छा.ः स्याच्च भिक्षुरिच्छेत्, शय्यामागम्य परिभोक्तुम्। सह पिण्डपातेनागम्य, उन्दुकं प्रत्युपेक्ष्य ।।७।। विनयेन प्रविश्य, सकाशे गुरोर्मुनिः। ईर्यापथिकामादाय, आगतश्च प्रतिक्रामेद् ।।८८।। आभोगयित्वा निःशेष, अतिचारं यथाक्रमम्। गमनागमनयोश्चैव, भक्तपानयोश्च संयतः ।।८९।। ऋजुप्रज्ञः अनुद्विग्नः, अव्याक्षिप्तेन चेतसा। आलोचयेद् गुरुसकाशे, यद्यथागृहीतं भवेत् ।।१०।। न सम्यगालोचित्तं भवेत्, पूर्वं पश्चाद्वा यत्कृतम्। पुनः प्रतिक्रामेत् तस्य, व्युत्सृष्टश्चिन्तयेदिदम् ।।११।। अहो! जिनैरसावद्या, वृत्तिः साधूनां देशिता। मोक्षसाधनहेतोः, साधुदेहस्य धारणाय ।।९२॥ नमस्कारेण पारयित्वा, कृत्वा जिनसंस्तवम्। स्वाध्यायं प्रस्थाप्य, विश्राम्येत् क्षणं मुनिः ।।१३।। भावार्थः उपाश्रय में आने के बाद मुनि आहार करने की इच्छावाला हो तब लाया हुआ निर्दोष आहार करने के स्थान का प्रमार्जन करे इसके पूर्व निसीहि' नमोखमासमणाणं कहते हुए विनयपूर्वक उपाश्रय में प्रवेश करें। गुरु भगवंत के पास आकर इरियावही : प्रतिक्रमण करे, कायोत्सर्ग में मोचरी जाते आते, आहार पानी लेने में क्रमशः जो अतिचार लगे हों उसे याद करें, सरलमतियुक्त, अव्यग्रचित्त युक्त, अव्याक्षिप्त चित्तयुक्त, जैसा जिस प्रकार से आहार पानी ग्रहण किया हो वैसा गुरु भगवंत से कहें, अनुपयोग .से पूर्वकर्म, पश्चात् कर्म आदि की जो-जो आलोचना सम्यक् प्रकार से न हुई हो उस हेतु पुनश्च (गोअरचरिया के पाठ पूर्वक) आलोचना करें एवं काउस्सग्ग में चिंतन करें कि 'अहो! श्री तीर्थंकर भगवंतों ने मोक्ष साधना के हेतु भूत और साधु के देह निर्वाहार्थ ऐसी निरवद्य वृत्ति बतायी है' फिर नमो अरिहंताणं से कायोत्सर्ग पारकर लोगस्स कहकर सज्झायकर, मार्ग के श्रम निवारणार्थ विश्राम करें ।।८७-९३।। देह की स्वस्थता हेतु विश्राम करना यह अतीवोपयोगी नियम है। विश्राम करने से आहार संज्ञा की तृष्णा को अल्पावधि तक रोकना एवं श्रम दूर होने से पाचन तंत्र का व्यवस्थित रहना यह आत्मिक एवं भौतिक दोनों प्रकार से लाभदायक है। . · निमंत्रण देना : विसमतो इमं चिंते, हियमटुं लाभमट्ठिओ। ... जड़ मे अणुग्गहं कुज्जा, साहू हुज्जामि तारिओ ||९४|| साहवो तो चियत्तेणं, निमंतिज्ज जहकम। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 75
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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