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________________ तम्हा एअं विआणित्ता, दोसं दुग्गइवड्ढणं| वज्जप्ट वेसन्सामंतं, मुणी एगंतमस्सिए।।११।। सं.छा.ः तस्मादेतं विज्ञाय, दोषं दुर्गतिवर्धनम्। • वर्जयेद् वेश्यासामन्तं, मुनिरेकान्तमाश्रितः।।११।। भावार्थ : इस कारण मोक्ष की एकमेव आराधना करनेवाले मुनि भगवंत दुर्गति वर्धक इस दोष को समझकर वेश्यादि स्त्रियाँ जहाँ रहती हों उस ओर गोचरी हेतु न जाये, उन स्थानों का त्याग कर दे ।।११।। टी.वी., वीडियो, अंग प्रदर्शन एवं अर्द्धनग्नावस्था जैसे वस्त्र परिधान के युग में मुनि भगवंतों को गोचरी के लिए जाते समय अत्यंत अप्रमत्तावस्था की आवश्यकता का दिग्दर्शन ऊपरके तीन श्लोकों से हो रहा है ज्ञान-वय-एवं व्रत पर्याय से अपरिपक्व मुनियों को गोचरी जाते समय, गोचरी भेजते समय ऊपर के तीन श्लोकों के रहस्य को विचाराधीन रखना आवश्यक है। .. इन तीन श्लोकों के शब्दार्थ को न देखकर उसके अंदर रहे हुए रहस्य को समझना आवश्यक है। . आज कितने ही मुनियों के भाव प्राणों का विनाश हो रहा है, अधःपतन हो रहा है एवं महाव्रतों का सर्वनाश होकर संसारी अवस्था प्राप्त कर रहे हैं उसके पीछे मूल कारण है इन तीन श्लोकों के रहस्यार्थ की ओर दुर्लक्ष्य। सद्गुरु भगवंतों से इन तीन श्लोकों के रहस्यार्थ को समझकर जीवन यापन · करने वाला गोचरी जानेवाला मुनि शास्त्रोक्त/आगमोक्त रीति से चारित्र पालन कर सकेगा। .: साणं सुइ गाविं, दित्तं गोणं हयं गये। ... संडिम्भं कलहं जुद्धं, दुरओ परिवज्जए||१२|| सं.छा.ः श्वानं सूतिकां गां, दृप्तं गावं हयं गजम्। ... सण्डिम्भं कलहं युद्धं, दूरतः परिवर्जयेत्।।१२।। भावार्थः गोचरी के लिए मार्ग में चलते समय श्वान, प्रसुता गौ (गाय), मदयुक्त वृषभ, अश्व, हस्ती, बालकों के क्रीड़ा का स्थान, इनको दूर से छोड़ देने चाहिए। अर्थात् ऐसे मार्ग पर से साधु को गोचरी नहीं जाना चाहिए ।।१२।। मुनि कैसे चले? अणुन्नर नावणए, अप्पहिढे अणाउले। इंदिआई जहाभागं, दमइत्ता मुणी चरे ।।१३।। सं.छा.ः अनुन्नतो नावनतः, अप्रहृष्टोऽनाकुलः। इन्द्रियाणि यथाभागं, दमयित्वा मुनिश्चरेत्।।१३।। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 59
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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