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।।२०।। (कोलं) बोर (अणुसिन्नं) न पकाया हो (वेलुअं) वंसकारेला (कासवनालिअं) सीवणवृक्ष का फल (पप्पडगं ) पापड़ी || २१ || (विअडं) कच्चा जल (तत्तनिव्वुडं) तीन उकाले बिना का जल (पूइ पिन्नागं ) सरसव का खोल ॥२२॥ ( कविट्ठ) कोठफल (माउलिंगं) बीजोरा फल (मूलगं मूला के अंग (मूलगत्तिअं) मूला का कंद (न पत्थओं) न मांगे (फलमंथूणि) बोर चूर्ण (बिअ मंथूणि ) जवादि का आटा ( बिहेलगं) बहेड़ा का फल (पियालं) चारोली के फल ||२४|| (समुआणं) शुद्धभिक्षा हेतु (उसढं) धनाढ्य ( नाभिधारओ) जावे नहीं ||२५|| ( असिज्जा ) गवेषणा करे (विसीइज्ज़) खेद करना (मायण्णे) मात्रज्ञ ||२६|| ( पच्चक्खे) प्रत्यक्ष ||२८|| (डहरं ) युवान (महल्लगं ) बड़े (वंदमाणं) वंदनकर्ता को (जाइज्जा) याचना (अणं) उसको (फरूस) कठोर ||२९ ।। (समुक्कसे) गर्व न करे ( अन्नेसमाणस्स) जिनाज्ञा पालक (अणुचिट्ठइ) पाला जाता है ।।३०।। (विणिगूहइ) छुपाता है (मामेयं) मेरा यह (दाइअं ) बताया (आयओ) ग्रहण करेगा (अत्तट्ठा) स्वयं का स्वार्थ (गुरुओ) बड़ा (दुत्तोसओ) जैसे-तैसे आहार से संतोषित न होनेवाला ।।३२।। (भद्दगं) अच्छा (विवन्नं) वर्णरहित (आहरे) लावे ||३३|| (जाणंतु) जाने (ता) प्रथम (इमे) यह (आययट्ठी) आत्मार्थी (अयं) यह (लहुवित्ती) रूक्ष वृत्ति युक्त (सुतोसओ) अति संतोषी ।।३४।। (पसवई) उत्पन्न करे ||३५|| (सुरं) मदिरा (मेरगं) महुए का दारू (मज्जगं) मादक (ससक्खं) साक्षी सहित (सारखं ) संरक्षण ||३६|| (पीयओ) पीता है (तेणो) चोर (पस्सह) देखो (निअडिं) माया को ||३७|| (सुंडिआ ) आसक्ति (अनिव्वाणं) अशांति (असाहुआ) असाधुता ।। ३८ ।। (निच्चुविग्गो) नित्य उद्विग्न (अत्तकम्मेहिं) स्वकर्म से ॥३९॥ (वि) भी (ण) इसकी ॥ ४० ॥ ( अगुणप्पेहि) अवगुण के स्थान को देखनेवाला ।।४१।। (अत्थ संजुत्तं) मोक्षार्थ युक्त ||४३|| (वयतेणे) वचन चोर || ४४॥ (अल) बकरा (मूअगं) मूकपना ।। ४८ ।। (अणुमायं) अणुमात्र ।। ४९ ।। ( भिक्खेसण सोहिं) आहार गवेषणा की शुद्धि (सुप्पणिहिइंदिओ) समता भाव से पांच इंद्रियों को विषय विकार से रोक दी है (तिव्व लज्ज) अनाचार करने में तीव्र लज्जायुक्त (गुणवं) गुणवान् (विहरिज्जामि) तुम विचरना ॥५०॥ मुनि कैसे चलें ?
संपत्ते भिक्खकालंमि, असंभंती अमुच्छिओ। इमेण कमजोगेण, भत्तपाणं गवेन्स || १ ||
सं.छा.ः सम्प्राप्ते भिक्षाकाले, असम्भ्रान्तोऽमूर्च्छितः ।
अनेन क्रमयोगेन, भक्तपानं गवेषयेत् ।।१।।
भावार्थ ः मुनिभिक्षा समय हो जाने पर असंभ्रात (अनाकुल) अमूर्च्छित अनासक्त रहते हुए आगे के श्लोकों में कहे जानेवाले क्रम योग से (विधि से ) आहार पानी की गवेषणा करे ॥ १ ॥
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 56