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(अदुवा) अथवा, या (संसेइम) आटे का धोया हुआ पानी (अहुणाधोअं) तुरंत का धोया हुआ पानी, मिश्रण ।।७५।। (चिराधोय) दीर्घ काल का धोया हुआ पानी (मइओ) सूत्रानुसारी बुद्धि से (भवे) होवे ।।६।। (अह) अब (भविज्जा) होवे (आसाइत्ताण) चखकर (रोअए) निश्चय करे ।।७७।। (आसायणट्ठाओ) चखने के लिए (दलाहि) दो (अच्चंबिलं) अतिखट्टा (पूइं) खराब (नालं) समर्थ नहीं है (विणित्त) निवारण हेतु ।।७८।। (अकामेण) बिना इच्छा से (विमणेणं) वैमनस्कता से (पडिच्छियं) ग्रहण किया (अप्पणा) स्वयं (पिबे) पीओ (दाव) दे,दिरावे ।।८०।। (एगंत) एकांत में (अवक्कमित्ता) जाकर (परिठप्प) परठकर ।।८१।। (कुट्ठगं) शून्य घर, मठ (भित्तिमूलं) भींत के पास (अणुनवित्तु) गृहस्थ की आज्ञा लेकर (पडिच्छन्नंमि) तृणादि से आच्छादित (संवुडे) उपयोग सहित (संपमज्जित्ता) अच्छी प्रकार पूंजकर ।।८२-८३।। (अट्ठिओ) कठिन बीज (सक्कर) कंकर (उक्खिवित्तु) उठाकर (निक्खिवे) दूर फेंके (आसअण) मुख से (न छडओ) न फेंके (गहेऊण) लेकर (अवक्कमे) जावे ।।८४-८५।। (सिज्जमागम्म) उपाश्रय में आकर (सपिंडपायं) शुद्ध भिक्षा लेकर (उंडुअं) भोजन करने के स्थल को।।८७।। (आयाय) बोलकर ।।८८।। (आभोइत्ता) जानकर (नीसेस) सभी ।।८९।। (वीसमेज्ज) विश्रांति ले।।९३।। (हियम8) हितार्थ (लाभमट्ठिओ) लाभार्थी (अणुग्गह) प्रसाद, उपकार (तारिओ) तारा हुआ ॥९४।। (सद्धिं) साथ में ।।१५।। (आलोए भायणे) प्रकाशवाले पात्र में ॥९६।। (अन्नत्थ पउत्तं) देहनिर्वाहार्थ ।।९७।। (सूइअं) शाकादि
सहित (उल्लं) हरा (सुक्क) शुष्क (मंथु) बोर चूर्ण (कुम्मास) उड़द के बाकले (उप्पन्न) ‘प्राप्त (नाइ) अधिक नहीं (हीलिज्जा) निंदा (मुहालद्धं) मुधाग्राही (मुहाजीवी) मुधाजीवी ।।९९।। (मुहादाइं) मुधादाता प्रत्युपकार की इच्छा बिना ।।१००|| उद्देश्य दूसरा : (पडिग्गह) पात्र को (संलिहित्ताणं) अच्छी प्रकार साफकर ।।१।। (समावन्नो) रहा हुआ (अयावयट्ठा) संयम के निर्वाहार्थ (भूच्चाणं) आहार करके (संथरे) निर्वाह होता है।।२।। (पुव्वउत्तेणं) पूर्वोक्त (उत्तरेण) आगे कहे अनुसार।।३।। (संनिवेस) ग्रामादि (गरिहसि) निंदा करता है।।५।। (सइकाले) समय होने पर (कुज्जा) करे (सोइज्जा) शोक करे (अहिआसओ) तप हुआ ऐसा चिंतन करे।।६।। (पाणा) प्राणि (उज्जुअं) सन्मुख ।।७।। (कत्थई) कहीं भी (पबंधिज्जा) करे (कह) कथा (चिट्ठित्ताण) बैठकर ।।८।। (फलिह) फलक (अवलंबिआ) अवलंबन लेकर ॥९।। (किविणं) कृपण (वणीमगं) दरिद्र (उवसंकमंत) जाते हुए ॥१०-१३।। (उप्पल) नीलकमल (पउमं) रक्तकमल (कुमुअं) कुमुद (मगदंतिअं) मोगरा (संलुंचिया) छेदकर (संमद्दिआ) मर्दन कर।।१४-१७।। (सालुअं) कमलकंद (विरालिअं) पलाशकंद (नालिअं) नाल (मुणालिअं) कमल के तंतु (सासव) सरसव (तरूणगं) तरूण, नये (अनिव्वुडं) अपरिणत (पवालं) प्रवाल (रूक्खस्स) वृक्ष का।।१९।। (तरूणिअं) बिना दाने का (छिवाडि) मुंग की फली (भज्जिअं) पकाई हुई मिश्र
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 55