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सुरक्षा का मुख्य साधन निर्दोष गोचरी है। सदोष गोचरी से देह की सुरक्षा होगी तो षड्जीवनिकाय की विराधना होगी। अतः निर्दोष गोचरी हेतु पिण्डैषणा अध्ययन तीर्थंकर आदि भगवंतों ने प्ररूपित किया है। जिसमें मुनि भगवंतों के एषणासमिति के पालन का विधान दर्शाया है।
पंचम अध्ययन के उपयोगी शब्दार्थ - (भिक्खकालंमि) गोचरी का समय (संपत्ते) हो जाने पर (असंभंतो) असंभ्रान्त ( अमुच्छिओ) अमूर्च्छित, (इमेण) इस (कमजोगेण) क्रमशः कही जानेवाली विधि से (गवेसओ) गवेसणा करें || १ || (गोअरग्ग गओ ) गोचरी गया हुआ (मंदं) धीमे-धीमे ( अणुव्विगो) अनुद्विग्न (अव्विक्खित्तेण ) अव्याक्षिप्त (चेअसा) मनयुक्त ||२|| (पुरओ) आगे (जुगमायाओ) साढे तीन हाथ प्रमाण (पेहमाणे) देखता हुआ।।३।। (ओवायं) खड्डे को (विषम) ऊँची-नीची (खाणूं) स्तंभ (विजलं) पानी रहित (परिवज्जओ) त्याग करें (संकमेण) पानी पर पत्थर या काष्ठ के पटिये पर से (गच्छिज्जा) जाय (विज्जमाणे ) विद्यमान हो तो (परक्कमे) दूसरे मार्ग पर जावे ॥४॥ (से) ते (पक्खलंते) स्खलना होने से ( हिंसेज्ज) हिंसा करे ||५|| (तम्हा) इसलिए (सुसमाहिओ) जिनाज्ञानुसार चलनेवाला ‘(अन्नेण) दूसरे (जयमेव) जयणायुक्त (परक्कमे ) चले ||६|| (इंगालं) अंगारे के, (छारिअं ) राख के (राशि) ढेर के (तुस) छिलके (गोमयं ) छाण (नइक्कम्मे ) उल्लंघन न करे ||७|| (वासे) वर्षा (वासंते) बरसते हुए (महियाए) धूम्मस (पडंतिओ) गिरते हुए (संपाइमेसु) संपातिम जीव उड़ते हो तब ॥८॥ (वेस सामंते) वेश्या के घर के आस-पास (अवसाणओ) विनाश की संभावना (विसुत्तिआ) मनोविकार पतन . 118|| (अणायणे) गोचरी के लिए निषेध घर (अभिक्खणं) बार-बार (वयाणं) व्रतों को (पीला) पीड़ा (संसओ) संशय (सामन्नंमि) श्रमणरूप में ||१०|| (अस्सिए) जिसने आश्रय किया है ||११|| (साणं) कुत्ता (सूइअं ) प्रसुता (गाविं) गाय को (दित्तं ) मदोन्मत्त (गोणं) वृषभ को ||१२|| (अन्न) ऊँचे न देखते हुए (नावणए) नीचे न देखते हुए (अप्पहिट्टे) हर्षित न होते हुए (अणाउले) अनुकूल (जहाभागं ) जिस इंद्रिय का जो विषय हो वह ||१३|| (दवदवस्स) शीघ्रतापूर्वक (उच्चावयं ) ऊँच-नीच ||१४|| (आलोअं) गवाक्ष (थिग्गलं ) बारी आदि (दाएं) द्वार (संधि) चोर द्वारा बनाया गया छिद्र (दगभवणाणि) पानी का स्थान (विनिज्जाओ) देखें (संकट्ठाणं) शंका के स्थान को ॥ १५ ॥ (रण्णो ) राजा की (गिहवइणं) गृहपति की (रहस्स) गुप्त बात (आरक्खि आण) कोटवाल की (संकिलेसकरं) अतिक्लेश का स्थान || १६ || (पडिकुट्ठ) प्रतिबंध ( मामगं) मेरे घर में मत आओ (अचिअत्तं) अप्रीतिकर ||१७|| (साणी) शण के पर्दे (पावार) कंबल वस्त्रादि (नाव पंगुरे) . खोले नहीं (नोपणुलिज्जा) धक्का न दें || १८ || ( ओगासं) स्थान (नच्चा) जानकर (अणुत्रविय) आज्ञा लेकर ।।१९।। (णीअ) नीचे द्वार (कुट्ठगं) कोष्ठागार, भंडार भोंयरादि ||२०|| (अहुणा) अभी ( उवलित्तं) लिपा हुआ (उल्लं) लीला, आद्र/भीना (दडणं) देखकर ॥ २१ ॥ (एलगं) बकरा (दारगं) बालक (वच्छगं) बच्चा (उल्लंघिआ) उल्लंघनकर श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 53