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________________ सं.छा.ः प्रथमं ज्ञानं ततो दया, एवं तिष्ठति सर्वसंयतः। __ अज्ञानी किं करिष्यति, किं वा ज्ञास्यति छेकं पापकम् ।।१०।। शब्दार्थ- (पढम) पहले (नाणं) जीव, अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञान (तओ) उसके बाद . (दया) संयम रूप क्रिया है (एवं) इस प्रकार ज्ञान और क्रिया से (चिट्ठए) रहता हुसा साधु (सव्वसंजए) सर्व प्रकार से संयत होता है (अन्नाणी) जीव अजीव आदि तत्त्वज्ञान से रहित साधु (किं काही) क्या करेगा (वा) अथवा (सेयापावगं) पुण्य और पाप को (किं नाही) क्या समझेगा? पहले ज्ञान और बाद में दया याने संयम रूप क्रिया से युक्त साधु साभी प्रकार से संयत कहलाता है। ज्ञानक्रिया से रहित साधु पुण्य और पाप के स्वरूप को नहीं जाम सकता। सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं| उभयपि जाणइ सोच्चा, जं सेयं तुं समायरे ।।११।। सं.छा.ः श्रुत्वा जानाति कल्याणं, श्रुत्वा जानाति पापकम्। ___उभयमपि जानाति श्रुत्वा, यच्छेकं (च्छ्रेयः) तत्समाचरेत् ।।११।। . शब्दार्थ - (सोच्चा) आगमों को सुन करके (कल्लाणं) संयम के स्वरूप को (जाणइ) जानता है (सोच्चा) आगमों को सुन करके (उभयं पि) संयम और असंयम को (जाणए) जानते हुए साधु (ज) जो (सेयं) आत्म हितकारी हो (तं) उसको (समायरे) आचरण करे। जिनेश्वर प्ररूपित आगमों को सुनने से कल्याणकारी और पापकारी मार्ग का ज्ञान होता है और दोनों मार्गों का ज्ञान होने के बाद जो मार्ग अच्छा मालूम पड़े उसको स्वीकार कर लेना चाहिए। जो जीवे वि न याणेड, अजीवे वि न याणइ। जीवाजीवे अयाणंतो कहं सो नाहीइ संजमं? ||१२।। सं.छा.ः यो जीवानपि न जानाति, अजीवानपि न जानाति। जीवाजीवानजानन, कथमसौ ज्ञास्यति संयमम् ।।१२।। शब्दार्थ - (जो) जो पुरुष (जीवे वि) एकेन्द्रिय आदि जीवों को भी (न याणेइ) नहीं जानता है (अजीवे वि) अजीव पदार्थों को भी (न याणइ) नहीं जानता है (सो) वह पुरुष (जीवाऽजीवे) जीव अंजीव को (अयाणंतो) नहीं जानता हुआ (संयम) सप्तदशविध संयम को (कह) किस प्रकार (नाहीइ) जानेगा? जो जीवे वि वियाणेड़, अजीवे वि वियाणइ। जीवाजीवे वियाणंतो, सोहु नाहीइ संजमं ।।१३।। सं.छा.: यो जीवानपि विजानाति, अजीवानपि विजानाति। जीवाजीवानपि विजानन्, स एव ज्ञास्यति संयमम् ।।१३।। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 46
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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