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________________ करते हुए (अन्नं पि) दूसरों को भी (न समणुजाणामि) अच्छा नहीं समझुं (भंते!) हे भगवन्! (तस्स) भूतकाल में की गयी हिंसा की (पडिक्कमामि ) प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करता हूँ ( निंदामि) आत्म- साक्षी से निंदा करता हूँ ( गरिहामि) गुरु - साक्षी से गर्हा करता हूँ (अप्पाणं) वनस्पतिकाय की हिंसा करनेवाली आत्मा का (वोसिरामि) त्याग करता हूँ। सकाय की रक्षा : सेभिक्खू वा भिक्खूणी वा संजयविरयपडिहय'पच्चकखाय - पावकम्मे, दिया वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से कीडं वा, पयंगं वा, कुंथं वा, पिपीलीअं वा, हत्थंसि वा, पायंसि वा, बाहुंसि वा, ऊरुंसि वा, उदरंसि वा, सीसंसि वा, वत्थंसि वा, पडिग्गहंसि वा, कंबलंसि वा, पायपुंछणंसि वा, रयहरणंसि वा, गोच्छगंसि वा, उंडगंसि वा, दंडगंसि वा, पीठगंसि वा, फलगंसि वा, सेज्जंसि वा, संधारगंसि वा अन्नयरंसि वा, तहप्पगारे उवगरणजाए तओ संजयामेव पडिलेहिअ पडिलेहिअ, पमज्जिअ पमज्जिअ, एगंतमवणेज्जा, नो णं संघायमावज्जेज्जा || ६ || (सू. १५ ) सं.छा.ः स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा संयत-विरत - प्रतिहत-प्रत्याख्यात-पापकर्मा दिवा वा रात्रौ वा एको बा परिषद्गतो वा सुप्तो वा जाग्रद्वा स की वा पतङ्गं वा कुन्थुं वा पिपीलिकां वा हस्ते वा पादे वा बाहौ वा ऊरुणि वा उदरे वा शिरसि वा वस्त्रे वा प्रतिग्रहे वा कम्बलके वा पादप्रोञ्छनके वा रजोहरणे वा गोच्छके वा उन्दके वा दण्डके वा पीठके वा फलके वा शय्यायां वा संस्तारके वाऽन्यतरस्मिन् तथाप्रकारे उपकरणजाते ततः संयत एव प्रत्युपेक्ष्य प्रत्युपेक्ष्य प्रमृज्य प्रमृज्य एकान्तेऽपनयेन्नैनं सङ्घातमापादयेत् ।।६।। (सू.१५) शब्दार्थ - (से) पूर्वोक्त पंचमहाव्रतों के धारक (संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे) संयम युक्त, विविध तपस्याओं में लगे हुए और प्रत्याख्यान से पापकर्मों को नष्ट करनेवाले (भिक्खू वा) साधु अथवा (भिक्खूणी वा') साध्वी (दिआ वा) दिवस में, अथवा (ओवा) रात्रि में, अथवा (एगओ वा) अकेले, अथवा (परिसागओ वा) सभा में, अथवा (सुत्ते वा) सोते हुए, अथवा (जागरमाणे) जागते हुए (वा) दूसरी और भी कोई अवस्था में (से) त्रसकायिक जीवों की रक्षा इस प्रकार करें कि (कीडं वा') १ 'वा' शब्द से सामान्य विशेष साधु साध्वी का ग्रहण करना। २. 'वा' शब्द से कीट, पतंग, कुन्थु, कड़ी आदि में सभी जातियों को ग्रहण करना चाहिए श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 41
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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