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________________ (भंते) हे गुरुवर! (सव्वं) समस्त (पाणाइवायं) जीवों की हिंसा करने का (पच्चक्खामि) प्रत्याख्यान लेता हूं। (से) उन (सुहुमं वा') सूक्ष्म (बायरं वा) बादर (तसं वा) त्रस (थावरं वा) स्थावर (पाणे) जीवों का (सयं) खुद (अइवाएज्जा) विनाश करे (नेव) नहीं (अन्नेहिं) दूसरों के पास (पाणे) त्रस स्थावर जीवों का (अइवायाविज्जा) विनाश करावे (नेव) नहीं (अइवायंते) त्रस स्थावर जीवों का विनाश करते हुए (अन्ने वि) दूसरों को भी (न समणुजाणेज्जा) अच्छा समझे नहीं। ऐसा जिनेश्वरों ने कहा, इसलिए हे गुरुवर्य! (जावज्जीवाए) जीवन पर्यन्त मैं (तिविह) कृत, कारित, अनुमोदित रूप त्रिविध हिंसा को (मणेणं) मन (वायाए) वचन (काएणं) काया रूप (तिविहेणं) त्रिविध योग से. (न करेमि) नहीं करता हूं (न कारवेमि) नहीं कराऊ (करंत) करते हुए (अन्नं पि) दूसरे को भी (न समणुजाणामि) अच्छा नहीं समझू (भंते) हे प्रभो! (तस्स) उस भूतकाल में की गयी हिंसा की (पडिक्कमामि) प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करता हूं (निंदामि) आत्म-साक्षी से निंदा करता हूं (गरिहामि) गुरु-साक्षी से गर्दा करता हूं (अप्पाणं) हिंसाकारी आत्मा का (वोसिरामि) त्याग करता हूं (भंते) हे मुनीश! (पढमे) पहले (महव्वए) महाव्रत में (सव्वाओ) समस्त (पाणाइवायाओ) त्रस स्थावर प्राणियों की हिंसा से (वेरमणं) अलग. होने के लिए (उवढिओमि) उपस्थित हुआ हूं।. . . . दूसरे महाव्रत की प्रतिज्ञा अहावरे दोच्चे भंते! महव्वए मुन्सावायाओ वेरमणं, सव्वं · भंते! मुसावायं पच्चक्खामि, से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं वइज्जा, नेवन्नेहिं मुसं वायाविज्जा, मुसं वयंते वि अन्ने न समगुंजाणामि, जाचज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि. दोच्चे भंते महव्वर उवढिओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेटमणं ।।१।। (सू.४) सं.छा.ः अथापरस्मिन् द्वितीये भदन्त! महाव्रते मृषावादाद्विरमणं सर्वं भदन्त! मृषावादं प्रत्याख्यामि. तद्यथा-क्रोधाद् वा लोभाद्वा भयाद्वा हास्यावा, नैव स्वयं मृषां वदामि, नैवाऽन्यैः मृषां वादयामि, मृषां वदतो ऽप्यन्यान् न समनुजानामि यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वाचा १ यहाँ पर 'वा' शब्द तज्जातीय ग्रहण करने के वास्ते है। जैसे त्रसकाय में सूक्ष्म-छोटे शरीरवाले कुन्थु आदि, बादर-मोटे शरीरवाले गो, महिष, हाथी आदि, और स्थावर जीवों में सूक्ष्म वनस्पति आदि, बादर पृथ्वी आदि, इसी प्रकार सूक्ष्म वनस्पति में भी सूक्ष्म, बादर और पृथ्वीआदि में भी सूक्ष्म, बादर की योजना स्वयं कर लेना चाहिए। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 26
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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