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________________ किये हैं। जो शस्त्रों से परिणत हो चुके हैं उनमें एक भी जीव नहीं है, अर्थात् वे अचित्त (जीव रहित ) हैं, ऐसा कहा है। सेजे पुण इमे अगे बहवे तसा पाणा, तं जहा अंडया पोयया जराउआ रसया संसेइमा, संमुच्छिमा उब्भिया उववाइआ जेसिं केसिं चि, पाणाणं अभिनंतं संकुचिअं पसारिअं रूयं भंतं तसियं पलाइअं आगइगइविन्नाया। सं.छा.ः अथ ये पुनरमी अनेके बहवस्त्रसाः प्राणाः, तद्यथा अण्डजाः पोतजा जरायुजा रसजाः संस्वेदिमाः, सम्मूर्च्छिमा उद्भिज्जा औपपातिका `येषां केषाञ्चित् प्राणिनां, अभिक्रान्तं प्रतिक्रान्तं सङ्कुचितं प्रसारितं रुतं भ्रान्तं त्रस्तं पलायितं, आगतिगतिविज्ञातारः । शब्दार्थ - (से) अब (पुण) फिर (जे) जो (इमे) प्रत्यक्ष (अणेगे) द्वीन्द्रिय आदि भेदों में अनेक (बहवे) एक-एक जाति में नाना भेदवाले (तसापाणा) त्रस जीव हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं - (अंडया) अंड से पैदा हुए पक्षी आदि (पोयया) पोत से पैदा हुए हाथी आदि (जराउया) गर्भ वेष्टन से पैदा हुए मनुष्य, गौ आदि (रसया) चलितरस से पैदा हुए जीव, (संसेइमा) पसीने में उत्पन्न जूं, लीख आदि (समुच्छिमा) पुरुष - स्त्री के संयोग बिना पैदा हुए पतंग आदि ( उब्भिया) भूमि को फोड़कर पैदा होनेवाले तीड़ आदि ( उववाइया) देव, नारकी आदि (जेसिं) जिनमें (केसिं चि) कितने ही (पाणाणं) त्रसजीवों का (अभिक्कंतं) सामने आना (पडिक्कंत) पीछे लौटना (संकुचियं ) शरीर को · संकुचित करना (पसारियं) शरीर को फैलाना (रुयं) बोलना (भंतं) भय से इधर-उधर भागना (तसियं) दुःखी होना (पलाइयं) भागना (आगइ) आना (गइ) जाना इत्यादि क्रियाओं को (विन्नाया) जानने का स्वभाव है। अंडज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, संमूर्च्छिम, उद्भिज्ज और औपपातिक ये सभी त्रस जीव हैं और ये सामने आना, पीछा फिरना, शरीर को संकोच करना; शरीर का फैलाना, शब्द करना, भय से त्रसित हो इधर-उधर घूमना । दुःखी होना, भागना, आना, जाना आदि क्रियाओं को जाननेवाले हैं। जे अ कीडपयंगा, जा य कुंथुपिपीलिआ सव्वे बेइंदिया, सव्वे तेइंदिया, सव्वे चउरिंदिया, सव्वे पंचिंदिया, सव्वे तिरिक्खजोणिआ सव्वे नेरइआ, सव्वे मणुआ सव्वे देवा सव्वे पाणा परमाहम्मिआ। एसो खलु छट्ठो जीवनिकाओ तसकाउत्ति, पवुच्चइ ॥ सू. १ सं.छा. : ये च कीटपतङ्गा, याश्च कुन्थुपिपीलिकाः सर्वे द्वीन्द्रियाः सर्वे त्रीन्द्रियाः सर्वे चतुरिन्द्रियाः सर्वे पञ्चेन्द्रियाः सर्वे तिर्यग्योनयः सर्वे १|| , श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 23
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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