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शब्दार्थ - (संनिही) घी, गुड़, शक्कर, आदि को संग्रह करके रखना १०, (गिहिमत्ते य) भोजन आदि में गृहस्थों के भाजन-बर्तन काम में लेना ११, (रायपिंडे) राजा के दिये हुए आहार आदि लेना १२, (किमिच्छए) क्या चाहते हो ऐसा कहनेवाले के घर से या .. दानशाला आदि से आहार आदि लेना १३, (संवाहणं) हाड़, मांस, चाम, रोम आदिको सुख पहुंचाने वाले तेल आदिलगाना(अंगमर्दन, पगचंपी आदिकरना) १४, (दंतपहोयणा य) दाँतों को धोकर साफ रखना १५, (संपुच्छणा) गृहस्थों को शाता पूछना या कुशल : सबन्धी पत्र लिखना १६, (य) और (देहपलोयणा) काँच आदि में शरीर, मुख आदि की शोभा देखना १७।।३।।
अट्ठावर य नालीर, छत्तस्स य धारणछाए।
तेगिच्छं पाहणापार, समारंभं च जोइणो ||४|| . सं.छा.ः अष्टापदं च नालीका, छत्रस्य च धारणानर्थाय।
__चैकित्स्यमुपानही पादयोः, समारम्भश्च ज्योतिषः।।४।। शब्दार्थ - (अट्ठावए य) विलायती चोपड़ खेलना १८, (नालीए) गंजीफा, शतरंज वगैरह जुआ खेलना १९, (छत्तस्सय धारणट्ठाए) रोगादि महान् कारण बिना भी छाता. आदि लगाना २०, (तेगिच्छं) ज्वरादि रोग नाशक जीविका करना २१, (पाहणा पाए) पैरों : में जूता, बूट, मौजा आदि पहनना २२, (च) और (जोइणो समारंभं) अग्नि का आरंभ समारंभ करना २३।।४।।
सिज्जायरपिंडं च आसंदीपलियंकए।
गिहतरनिन्सिज्जा य, गायस्सुव्वट्टणाणिय ।।५।। सं.छा.ः शय्यातरपिण्डश्च,आसन्दीकपर्यङ्कको। ,
___ गृहान्तरनिषद्या च, गात्रस्योद्वर्तनानि च ।।५।। शब्दार्थ - (सिज्जायरपिंडं च) उपाश्रय, धर्मशाला, मकान, आदि में उतरने की आज्ञा देनेवाले गृहस्थ के घर से आहार वगैरह लेना २४, (आसंदीपलियंकाए) चटाई, गादी, जाजम आदि पर बैठना २५, पलंग, खाट, मांची, डोली आदि पर बैठना २६, (गिहतरनिसिज्जाए) दो घरों के बीच या उपाश्रय के बाहर दूसरों के घर में शयन करना २७, (य) और (गायस्सुवट्टणाणि) शरीर को कोमल या स्वच्छ बनाने के लिए पीठी आदि का उबटन करना २८ ।।५।।
गिहिणो वेआवडियं, जा य आजीववत्तिया।
तत्तानिव्वुडभोइत्तं, आउरस्सरणाणि य ||६|| सं.छा.ः गृहिणो वैयावृत्त्यं, या च, आजीववृत्तिता।
तसानिवृत्तभोजित्वं, आतुरस्मरणानि च ।।६।। शब्दार्थ - (गिहिणो) गृहस्थों की (वेयावडियं) काम काज आदि सेवा करना २९, (जा य
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 14