________________
उद्वेग न करावे, ऐसी भाषा मुनि बोले ।।४९।।
आयार-पन्नत्ति-धरं, दिट्ठिवाय-महिज्जगं|
वायविक्खलिअं नच्चा, न तं उवहसे मुणी ।।५०।। सं.छा. आचारप्रज्ञप्तिधरं, दृष्टिवादमधीयानम्।।
वाग्विस्खलितं ज्ञात्वा, न तमुपहसेन्मुनि ।।५०।। भावार्थ : आचार प्रज्ञप्ति के धारक एवं दृष्टिवाद के अध्येता संभवतः प्रकृति, प्रत्यय, लिंग,काल, कारक, वर्ण में स्खलित हो गये हो, बोलने में प्रमादवश भूल हो गयी हो, तो उनका उपहास न करें ।।५०।। .. निमित्त मंत्र तंत्र से रहित साध्वाचार पालन :
नक्खत्तं सुमिणं जोगं, निमित्तं मंत-भेसज।
गिहिणो तं न आइक्खे, भूआहिगरणं पयं ।।५१|| सं.छा.: नक्षत्रं स्वप्नं योगं, निमित्तं मन्त्रभेषजम्।
___ गृहिणां तन्नाचक्षीत, भूताधिकरणं पदम्।।१।। भावार्थ : मुनि नक्षत्र, स्वप्न, वशीकरणादि योग, निमित्त मंत्र, औषध आदि गृहस्थों से न कहें। कारण है कि कहने से एकेन्द्रियादि जीवों की विराधना होती है। गृहस्थों की । अप्रीति दूर करने हेतु कहें कि इन कार्यों में मुनियों को बोलने का अधिकार नहीं है। मुनि कहां रहे? . अलठ्ठ पगडं लयणं, भइज्ज सयणासणं।
उच्चारभूमि-संपल्लं, इन्थी-पसु-विवज्जिअं ।।५२।। सं.छा.ः अन्यार्थं प्रकृतं लयनं, भजेच्च शयनासनम्। '
उच्चारभूमिसम्पन्नं, स्त्रीपशुविवर्जितम् ।।१२।। भावार्थ : दूसरों के लिए बनी हुई, स्थंडिल मात्रा की भूमि सहित, स्त्री, पशु रहित स्थान में मुनि रहे एवं संस्तारक और पाट पाटला आदि दूसरों के लिए बने हुए प्रयोग में लें।॥५२॥ मुनि परिचय किससे करें?
विवित्ता अ भवे सिज्जा, नारीणं न लवे कह।
गिहि-संथवं न कुज्जा, कुज्जा साहूहिं संथवं ॥५३॥ सं.छा.: विविक्ता च भवेच्छय्या, नारीणां न लपेत्कथाम्।
गृहिसंस्तवं न कुर्यात्, कुर्यात्साधुभिः संस्तवम् ।।५३।। भावार्थ : दूसरे मुनि या भाई-बहन से रहित एकान्त स्थान में अकेली स्त्रिओं को मुनि धर्म कथा न कहें, शंकादि दोषों का संभव है, उसी प्रकार गृहस्थियों का परिचय मुनि
श्री दशवकालिक सूत्रम् - 136