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८० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक तोता पद्मावती के वर के विषय में वार्तालाप कर रहा था तो राजा ने इसे सुन लिया। राजा ने क्रुद्ध हो उसे मरवाने को कहा। इस बार वह बचा लिया गया। परन्तु भविष्य के भय की आशंका से वह उड़ गया । उड़कर जंगल में पहुँचा, वहाँ किसी बहेलिये ने उसे पकड़ लिया। तोते को बहेलिये ने ब्राह्मण के हाथों बेच दिया। ब्राह्मण ने उसे चित्तौर के राजा रतनसेन को एक लाख रुपये में बेच दिया। रतनसेन का तोते से बहुत प्रेम बढ़ गया। एक दिन राजा रतनसेन आखेट में गया हुआ था। उसकी रानी नागमती ने तोते से सगर्व पूछा-'तोते सच-सच कहो, क्या मेरे. समान इस संसार में कोई अन्य सुन्दरी है ?' हीरामन ने सिंहलद्वीप की राजकुमारी को प्रशंसा कर दी। अतः रानी क्रोधित हो गई और उसे अपनी चेरी से मरवाने को कहा। चेरी रानी के कहने से उसे ले गई परन्तु राजा के भय से मारा नहीं, छिपाकर रख लिया। राजा ने आखेट से लौटने पर तोते के लिए पूछा। राजा को क्रोधित होते देख चेरी ने उनके सामने तोता रख दिया। __राजा ने हीरामन से सारी बात पूछ ली। हीरामन से पद्मावती के सौन्दर्य का वर्णन सुनकर राजा मूच्छित हो गया। हीरामन के बहुत समझाने पर भी राजा को धैर्य नहीं हुआ और वह सिंहलद्वीप जाने को उद्यत हुआ। हीरामन के कहने पर राजा ने योगो का वेश बनाया। राजा के साथ में १६ सहस्र राजकुमार भी यात्रा पर चले। सबका पथप्रदर्शन हीरामन तोता कर रहा था। ___ रतनसेन मार्ग की आपदाओं को झेलता हुआ कलिंग देश पहुंचा। कलिंग से जहाजों में बैठकर सिंहलद्वीप की ओर सोलह सहस्र योगी राजकुमारों के साथ रतनसेन चल पड़ा । सात समुद्रों को पार करके वह सिंहलद्वीप पहुँचा । हीरामन तोते ने सभी को शिवमंदिर में ठहरा दिया। रतनसेन से उसने कहा कि वसन्तपञ्चमी के दिन पद्मावती यहाँ पूजन करने आती है अतः तबतक यहीं ठहरना होगा। होरामन पद्मावती के पास चला गया।
हीरामन ने पद्मावती से रतनसेन के विषय में सब कुछ बताया। वह उसके लिए विकल हो गई। वसन्तपञ्चमी को वह मंदिर गई और वहाँ रतनसेन को देखा। रतनसेन पद्मावती को देखते ही मच्छित हो गया। वह मूच्छित रतनसेन के पास गई और चन्दन से उसके सीने पर