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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ७९ ४. सं०-मौलवी अलीहसन, कानपुर से प्रकाशित. .५. दि पदुमावति आफ म० मु० जायसी, ई० १९११-१२ में ग्रियर्सन और सुधाकर द्विवेदी द्वारा संपादित, रायल एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल. ६. जायसी ग्रन्थावली, सं०-पं० रामचन्द्र शुक्ल, प्र० सं० ई० १९२४; द्वि० सं० ई० १९३५ में ना० प्र० सभा काशी से प्रकाशित. ७. पदमावत पूर्वार्द्ध, सं०-लाला भगवानदोन, प्रका०-हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, ई० १९२५. ८. संक्षिप्त पदमावत, सं०-डा० श्यामसुन्दरदास, ई० १९२६. ९. पदुमावति, श्री सूर्यकान्त शास्त्री, लाहौर, ई० १९३४.. १०. पदुमावति, दी लिंग्विस्टिक स्टड़ी आफ दि सिक्स्टीन्थ सेन्चुरी हिन्दी, डा० लक्ष्मीधर ( केवल १०६ छन्द ), लंदन, ई० १९४९. ११. जायसी ग्रन्थावली, सं०-डा० माताप्रसाद गुप्त, हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रयाग, ई० १९५१. १२. पदमावत संजीवनी व्याख्यायुक्त, सं०-डा. वासुदेवशरण अग्रवाल, चिरगांव, झांसी से ई० १९५५ में प्रकाशित. यह अपनी प्रेम-परम्परा के लिए प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में ऋतुवर्णन, समुद्रवर्णन, प्रकृतिवर्णन, युद्ध-वर्णन, विरह-वर्णन और सुस्वादु-वर्णन आदि विस्तार के साथ वर्णित हैं। इनके अतिरिक्त कथा में रहस्यवाद एवं आध्यात्मिक पक्ष तथा सूफ़ी सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन किया गया है। कथा में शुक, सिंहलद्वीप, योगी, बारहमासा, स्वप्नदर्शन आदि अनेकों कथानक-रूढ़ियों का प्रयोग खूब किया गया है जिनका परवर्ती प्रेमाख्यान साहित्य पर पूर्ण प्रभाव पड़ा-इसमें सन्देह नहीं। पद्मावती नाम की ': बहुत सी रानियों का उल्लेख साहित्य में मिलता है। परन्तु जिस पद्मावती का वर्णन जायसी ने किया है वह अद्वितीय है । कथासार इस प्रकार है : सिंहलद्वीप के राजा गंदर्भसेन और चम्पावती की कन्या पद्मावती परमसुन्दरी थी। उसके योग्य वर नहीं मिल रहा था । पद्मावती के पास एक हीरामन तोता था जो अत्यधिक वाक्पटु और पण्डित था। एक दिन १. जायसीकृत चित्ररेखा, सं०-डा० शिवसहाय पाठक के प्राक्कथन से उद्धृत, पृ० ४९-५०...
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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