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________________ ( ६ ) हरजसराय जैन तथा असमर्थ रहता । ऐसी संस्थाओं एवं व्यक्तियों को एक लम्बी तालिका है जिनसे मैं उपकृत और लाभान्वित हुआ हूँ । इस अवसर पर मैं सभी का स्मरण करना चाहता हूँ। फिर भी स्थानाभाव अथवा भूल से कुछ असावधानी हो जाये तो मैं क्षमा चाहूँगा । काशी विश्वविद्यालय का मैं चिरऋणी रहूँगा, चूँकि मैं इस संस्था का विद्यार्थी रहा हूँ । पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के मंत्री श्री अध्यक्ष डा० मोहनलाल मेहता का किन शब्दों में आभार मानूं जिन्होंने मुझे शोध छात्रवृत्ति प्रदान की तथा इस प्रबन्ध को प्रकाशित करने की कृपा की । पं० वाचस्पति पाठक, स्व० डा० हीरालाल जैन, डा० ए० एन० उपाध्ये, पं० दलसुख मालवणिया, डा० भागचन्द्र जैन ने मेरी शोधसम्बन्धी कठिनाइयों को पत्रों द्वारा हल करने की कृपा की। मैं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ । • डा० कृष्णविहारी मिश्र, डा० दरबारीलाल कोठिया, पं० फूलचन्द्र शास्त्री, डा० गोकुलचन्द्र जैन, श्री सूर्यमणि मिश्र, श्री छोटेलाल गुप्त, श्री दुर्गाप्रसाद भट्टाचार्य, श्री एस० के० 'हिन्दी' और डा० चन्द्रप्रकाश त्यागी भी मेरे लिए अविस्मरणीय हैं । इन सभी ने मुझे बराबर लिखने की प्रेरणा दी। मित्रों में श्री मोहनलाल, लालचन्द्रबालचन्द्र शास्त्री, जयप्रसाद बलोधी, के० रवि० मेनन, शालिग्राम त्रिपाठी और बलराम रेकबार के सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता । पिता श्री शोभाराम जी जैन, अग्रज डा० ज्ञानचन्द्र जी जैन ने अध्ययन के लिए पारिवारिक समस्त दायित्वों से मुक्त रखकर मुझे पूर्ण स्वतन्त्र और निश्चिन्त रहने दिया । विशेष रूप से यह कार्य इसीलिए सम्पन्न हो सका । मैं नतमस्तक हूँ । अन्त में मैं उन समस्त लेखकों, आलोचकों और ग्रन्थकारों का आभारी हूँ जिनसे मैंने शोध-प्रबन्ध के लिए सहायता ली है । विद्वान् पाठकों से निवेदन है कि वे मेरी त्रुटियों को सुझाकर उन्हें दूर करने का अवसर प्रदान करें । सुमेर आई हॉस्पिटल इस्लामनगर, बदायूँ १६-६-७३ प्रेमचन्द्र जैन प्रवक्ता, हिन्दी विभाग साहू जैन कॉलेज नजीबाबाद ( उ० प्र० )
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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