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________________ ६० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक वीणा बजाता हुआ कठिन मार्ग पर शंकर का ध्यान करता हुआ चंपावती की ओर चला। . इधर प्रातःकाल वैरागर के मन्त्री गुनगंभीर ने कुमार को शैया के साथ लापता पाया तो उनकी सारी गम्भीरता समाप्त हो गई। सभी विह्वल हो उठे। मंत्री ने चित्ररेखा और मधुमालतो की कथा सुन रखी थी। अतः उन्होंने सोचा-हो न हो शैया को कोई अप्सरा उड़ा ले गई हो । उन्होंने सेना को चंपावती को ओर बढ़ने का आदेश दिया। बहुत दिनों तक पथ-पीड़ाओं के झेलने के बाद कुमार एक अद्भुतअनुपम बाग में पहुंचे। वहाँ एक सुन्दर तालाब था। उसमें सुन्दरियाँ जल भर रही थीं। उसी स्थान पर सरसेन ने अपनी वीणा बजाई, जिससे समस्त स्त्रियाँ, जीव-जन्तु इकट्ठे हो गये एवं मुग्ध हो उठे। सूरसेन ने चम्पावतो नगर में प्रवेश किया। उनके आने की सूचना नगर में पहले ही फैल चुकी थी। वे शिवमन्दिर में पहुँचे और शिव की स्तुति की। ____ इधर लग्न का समय आ पहँचा परन्तु संरसेन का कोई पता नहीं। देश-देश से कुमारी के स्वयंवर के लिए भूपति आने लगे। रम्भा को चिन्ता हो चली । सूरसेन की वीणा का नगर में शोर था। रम्भा को सखी गुनमंजरी इस रहस्यमयी योगी का रहस्य जानने आई जिससे योगी ने एक विरह की गाथा कही । गुनमंजरी ने अन्तःपुर जाकर सारा भेद मदनमुदिता को बताया। रम्भा की आज्ञा से मदनमुदिता योगी से मिलने गई। कुमार ने बुद्धिविचित्र का पता पूछा और रम्भा से मिलने की इच्छा व्यक्त की। मुदिता ने रम्भा को आश्वस्त किया कि सेना पीछे आ रही है। रम्भा विवाह के पूर्व शिवयाचना के लिए शिवमन्दिर पहुँची । चम्पावती की सेना रम्भा के साथ गई और मन्दिर के चारों तरफ खड़ी रही। सूरसेन और रम्भा प्रथम मिलन के अवसर पर एक-दूसरे को अवाक् देखते रह गये । रम्भा लौटी तो कुमार बेहोश हो गया। मदनमुदिता ने उसे सब काम सावधानी से करने की सलाह दी। वह लौटकर वैरागर से आने वाली अपनी सेना से मिला । चम्पावती नरेश ने अपने मन्त्री को बुलाकर सूरसेन और उनकी सेना को उचित स्थान देने को कहा। . शुभ दिन पर मंडप की रचना कराकर विजयपाल ने स्वयंवर के लिए मंडप में आगमन का सभी नरेशों को निमन्त्रण दिया । रम्भा की सखियों ने रम्भा को बहुविध सजाया-संवारा। उसका रूप अप्सराओं से
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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