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४४ : "अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
सरोवर पर जाने लगा। मालती भी वहाँ आती थी। मधु को देखकर मालती के मन में उसके प्रति अनुराग हो गया। अन्य स्त्रियाँ भी जो मानसरोवर पर जल लेने आती थीं उसपर मुग्ध होती थीं। __ तारनसाह ने अपने घर पर ही पुत्र की शिक्षा प्रारम्भ कर दी । राजा ने मालती की शिक्षा के लिए मन्त्री से सलाह ली तो उसने मालती को नंद के यहाँ हो पढ़ाने को सलाह दी। मालती को जब नन्द पढ़ाते थे, बीच में एक पर्दा रहता था जिसकी ओट में मालती बैठती थी। मधु नन्द के पास बैठता था। ____एक दिन गुरुजी की अनुपस्थिति में मालती ने पर्दा हटाकर मधु को देखा । वह तत्काल उसपर मुग्ध हो गई और अपना प्रेम प्रकट किया। मध ने कहा कि मैं मन्त्री का पुत्र हूँ, तुम राजा की कन्या। अतः सम्बन्ध नहीं हो सकता। इस बात की पुष्टि में उसने सिंहिनी और मग को मार डालने की कथा का उल्लेख किया। अतः हम लोगों में भी वैषम्य के कारण सम्बन्ध कैसे हो सकता है। इसी तरह मंग के सिंहिनी से पूछने पर घूहड़-काग विरोध की एक कथा सुनाई । इन कथाओं से मधु ने विषमता के सम्बन्ध दुःखदायी होते हैं यह मालती को बताया। परन्तु मालती ने कथा में सुधार करके बताया कि सिहिनी ने अपने प्रेम को प्राण देकर भी निभाया । जब सिंह मृग के प्राण ले रहा था तब सिंहिनी मृग के सींगों पर जा पड़ी और मग को मृत्यु से पहले ही अपने प्राण त्याग दिये । इस प्रकार सिंहिनी के प्रेम को सच्चा प्रमाणित किया।
इसके बाद मालती ने मधु को नपति कुँवर कर्ण और पदमावती की कथा सुनाई। नपति कुँवर ने मन में निश्चय कर रखा था कि जो स्त्री उससे प्रेम करने के उद्देश्य से आगे बढ़ेगी वह उसी से प्रेम करेगा। उसने अपने इस हठ पर साठ विवाह किए। किन्तु एक भी स्त्री ने प्रथम मिलन पर प्रणयानुरोध नहीं किया । अतः उसने सभी स्त्रियों को छोड़ दिया। उसके गुणों को प्रशंसा सोरठ की राजकन्या पद्मावती तक पहुंची। उसने नृपति कुँवर से ही विवाह करने की प्रतिज्ञा की। उसे समझाया गया परन्तु वह नहीं मानी। विवाहोपरान्त पद्मावती भी पूर्व साठ पत्नियों के समान ही छोड़ दी जाती। परन्तु उसकी चैनरेखा नामक सखी ने समय पर सहायता की । उसने छिपकर एक गुलाबभरी पिचकारी पद्मावती को मारी, जिससे वह अचानक नृपति कुँवर के गले से लिपट