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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३४१ भूत अन्तर दृष्टिगोचर नहीं होता । अपभ्रंश कथाकाव्यों में जल-क्रीड़ा, उद्यान - क्रीड़ा, आखेट, गोपियों के रास व चर्चरी नृत्य, वेश्याओं द्वारा गायन व नृत्य, वेश्यागमन और द्यूतक्रीड़ा आदि मनोरंजन के साधनों का उल्लेख हुआ है । वीर कवि ( ११वीं शती) के जम्बूसामिचरिउ जिनदास नामक पात्र प्रतिदिन घर से द्रव्य चुराकर वेश्या का उपभोग करता और डिम व डक्का बजते हुए सजी दुकानों में मद्य पीता तथा जुए का एक बड़ा फलक सजाकर कंकरों के स्वर और ज्वारियों की विरस ध्वनियों के साथ जुआ खेलता : अणुदिणु दविणु घराउ हरेष्पिणु वेसायणु भुंजइ तं देषिणु । बज्जिय डक्क- हुडुक्क समाणए पियइ मज्जु विरइय- आषाणए ॥ —४.२.१. उक्त काव्य में ही वेश्यागामी का एक सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया गया है - ' सुदृढ़ गांठ से अपने परिधान में शलाका लगाये हुए, पृथुल कटितट पर छुरी लटकाये हुए, सिर पर घना जटाजूट बांधे हुए, अगरू आदि सुगन्धित द्रव्य से पवन को सुगन्धित करते हुए, श्वेत ताम्बूल पत्र का बोड़ा चबाते हुए, दाहिने हाथ से तलवार घुमाते हुए, कामलता नामक कामिनो को नर छोड़कर प्रतिदिन वेश्याहाट को देखा करता था । जहाँ वेश्याएँ अत्यधिक सुडौल - रूपवान व्यक्ति को भी धनहीन हो जाने पर कुरूप मानती हैं...' आदि ।' स्पष्ट है कि उस समय वेश्यागमन खुले रूप में मनोरंजन का साधन था और शासन का उसपर कोई प्रतिबन्ध नहीं था । णायकुमारचरिउ ( पृ० ४८-४९ ), कीर्तिलता ( पृ० २५८-६० ) आदि अपभ्रंश काव्यों में वेश्याहाटों की विस्तृत चर्चा की गई है । सन्देशरासक में मनोरंजन के साधनों का उल्लेख करते हुए अद्दहमाण ने लिखा है : कह व ठाइ चउबेइहि वेउ पपासियs । कह बहुरुवि णिबद्धउ रासउ भासियइ ॥ कह व ठाइ सुदयवच्छ कत्थ व नलचरिउ । are व विवि विणोsह भारहु उच्चरिउ ॥ १. जम्बू सामिचरिउ, ९.१२-१३, पृ० १८० - १८४.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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