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३१८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक आलोकितः कुरबकः कुरुते विकाश
मालोडितस्तिलक उत्कलिको विभाति॥ .
-कुमारसंभव, ३.२६ को टीका. वृक्ष-दोहद पर आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य की भूमिका ( पृ० २३० आदि ) में विस्तृत विवेचन किया है। _ तिथि-दोहद के उदाहरण हमें हिन्दी कथाकाव्य माधवानल-कामकंदला, रसरतन आदि ग्रन्थों में बहुतायत से मिल जाते हैं। जैसे गणपतिकृत माधवानल-कामकंदला में तिथि-विधि-निषेध शीर्षक से तिथि-दोहद की बात पुष्ट होती है :
आजा पडवा प्रेतबीज, अखात्रीज युग आदि। वरजी चुथि गणेसनी, रिसिपंचमी प्रसादि ॥ ५९॥ . चंपाछठि नई अंचला, सत्तमि सीतल सुजाण । आठमि दुर्वा गोकुला, नवमी राम रमाण ॥ ६०॥ कलियुग आदि त्रयोदशी, चौदशि ईश अनंत । आमा नइ पुनिम प्रगट, नारि न देखइ कंत ॥ ६२॥ आदित्यवार अनइं वली, मूल मघा रेवत्ति। पौढी पुष्य पुनर्वसु, सोचि चढइ नहीं सत्य ॥ ६३ ॥ चैत्र आसोई नुरतां,. अपर पक्षना दोह।
परवशि पिंड करी रहइ, अतां आडी लोह ॥ ६७ ॥ रसरतन में पुहुपावती के जन्मोपरान्त ज्योतिषो भविष्यवाणी करते हैं : इह विधि पंडित करहिं बखाना। विद्यावान भविष्य निदाना ॥ १८३ ॥
दस अतीत एकादशी होंहि अवर्ष समान। तन पीड़ा मन मूढता रहहि जतन कर प्रान ॥ १८४ ॥ जहिं चतुर्दस वरष, वर वाला करहि प्रवेस।
तब कुटुम्ब चिंता मिटहि, निश्चित होहिं नरेस ॥ १८५ ॥ सूरसेन और राजकुमारी का सरोवर के तीर पर संयोग हुआ उसमें तिथिवार दिया है :
जेठ मास सित पश्छिमी, तिथि दसमी दस जोग। सूर सरोवर तीर पर, भयौ उभै संजोग ॥ २३३ ॥