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________________ * ३१६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक ५. दोहद स्त्री के द्वारा प्रस्तुत एक विश्वास है कि वह कुछ इच्छाओं की संतुष्टि कर सके । ६. दोहद एक बनावटी आवश्यकता है जो कि इस विश्वास में स्त्रियों की एक चाल (ट्रिक ) है कि उनकी इच्छा पूर्ति होनी चाहिए । दोहद के उक्त छः रूपों में से अन्तिम रूप का प्रयोग अपभ्रंश अथवा हिन्दी प्रेमाख्यानकों में देखने को नहीं मिला । भारतीय मान्यता गर्भिणी की इच्छापूर्ति का उपक्रम है । याज्ञवल्क्यस्मृति में स्पष्ट लिखा है. कि गर्भिणी की विचित्र इच्छाएँ गर्भ का स्वाभाविक और सहज परिणाम है अतः उनकी पूर्ति अवश्य होनी चाहिए। संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी : प्रेमाख्यानों में इस परिपाटी को काल्पनिक कलेवर देकर चित्र-विचित्र: बनाने का खूब प्रयत्न हुआ । दोहद के तीन भेद किये जा सकते हैं। सामान्य दोहद अर्थात् गर्भिणी की इच्छापूर्ति और वृक्ष - दोहद तथा तिथिदोहद | वृक्ष - दोहद एक प्रकार की काव्यरूढ़ि हो गई थी । वृक्ष के साथ दोहद का अर्थ पुष्पोद्गम है । मेघदूत, रघुवंश, नैषध आदि में इस शब्द प्रयोग इस अर्थ में हुआ है । तिथि- दोहद के अन्तर्गत यात्रा के समय तिथि, वार या दिशा से उत्पन्न दोषों की शान्ति के उपक्रमों को परिगणित किया जा सकता है । मुहूर्तचिन्तामणि आदि ग्रन्थों में इस पर विस्तार से विचार है । रास्ते में होने वाले शकुन-अपशकुनों को भी इसी में सम्मिलित कर लेना चाहिए | अपभ्रंश और हिन्दी कथाकाव्यों में तीनों प्रकार के दोहदों से सम्बद्ध सामग्री प्राप्त होती है । यह रूढ़ि संस्कृत साहित्य से ही चली आ रही है । भवभूति ने उत्तररामचरित में सीता के मुख से दोहदपूर्ति का आग्रह कराया है । राम, लक्ष्मण और सीता जब वनवासादि के समय के भित्तिचित्रों को देखकर पूर्वानुभूतियों का स्मरण कर रहे थे तो इसी बीच अर्जुन के फूलों से सुगन्धित माल्यवान् पहाड़ के चित्र का चित्रण लक्ष्मण द्वारा किये जाने पर राम ने उन्हें रोका । राम से सीता कहती हैं- 'आर्यपुत्र, एतेन चित्रदर्शनेन प्रत्यु - त्पन्न दोहदाया मम विज्ञापनीयमस्ति ।' सीताजी को गर्भिणी की इच्छा के रूप में भागीरथी में स्नान करने की इच्छा हुई । वे कहती हैं - ' जाने पुनरपि प्रसन्नगम्भीरासु वनराजिषु विहृत्य पवित्रनिर्मलशिशिरसलिलां
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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