SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रास्ताविक : १३ कथाओं का लक्ष्य होता है उपदेश और दूसरे प्रकार की कथाओं का मात्र मनोरंजन । इस प्रकार कथा-आख्यायिका को परिभाषा विभिन्न आचार्यों तथा कोशकारों ने विभिन्न प्रकार से की है। हिन्दी साहित्य कोश में कथा की परिभाषा इस प्रकार की गई है : 'किसी ऐसी कथित घटना का कहना या वर्णन करना जिसका कोई निश्चित परिणाम हो। घटना के वर्णन में कालानुक्रम भी आवश्यक है, जैसे सोमवार के पश्चात् मंगलवार, दिन के बाद रात, बचपन के बाद यौवन आदि। मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी-पहाड़ आदि । विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से कथा की घटना का सम्बन्ध हो सकता है। जिससे सम्बन्धित घटना हो, उसकी किसी विशेष परिस्थिति या परिस्थिति का आदि और अन्त से युक्त वर्णन ही कथा है'। प्रसिद्ध उपन्यास आलोचक ई० एम० फोर्सटर ने लिखा है कि कथा, समय को शृंखला में बँधा हुआ घटनाओं का पूर्वापर विवरण है। इसी के समान एडविन म्योर की भी परिभाषा है । वे लिखते हैं : 'गद्यकाव्य की सबसे सरल विधा कथा है जो घटनाओं को अद्भुत ढंग से ब्योरेवार रिकार्ड करती है। यहाँ संस्कृत कथाकाव्यों के लक्षणों के साथ-साथ यह जान लेना भी अनिवार्य हो जाता है कि कथाकाव्यों की भाषा के विषय में आचार्यों का क्या मत रहा था । यों दण्डी आदि के अनुसार कथा गद्य में ही रचित होनी चाहिए। परन्तु रुद्रट की मान्यता है कि कथा के आरम्भ में देवता और गुरुं की वंदना होनी चाहिए। ग्रन्थकार को ग्रंथ एवं स्वयं का परिचय देना चाहिए । कथोद्देश्य व्यक्त करना चाहिए। सकल शृंगारों से १. डा० सत्यनारायण पांडेय, संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, __ पृ० २७१. २. डा० धीरेन्द्र वर्मा, हिन्दी साहित्यकोश, पृ० १८३-८४. 3. "It is narrative of events arranged in their time ___sequence." -E. M. Forster, Aspects of Novel, p. 47. 8. "The most simple form of prose fiction is the story which records a succession of events, generally marveIlous." --Ed win Muir, The Structure of Novel, p. 17.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy