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. .. अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २४५ यही कारण है कि चरित, कथा, रास आदि विविध काव्यरूपों में एवं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी आदि विविध भाषाओं में ९५ काव्य जम्बूस्वामी-विषयक मिलते हैं। प्रस्तुत काव्य' की रचना वोर कवि ( वि० सं० १०२५ ) ने अपभ्रंश भाषा में की है। इसकी कथा संक्षेप में इस प्रकार है : ___ ग्रन्थ का प्रारम्भ जिनेन्द्र देवों की स्तुति से होता है । ग्रन्थकार अपने माता-पिता, प्रेरणादायकों का परिचय देने के बाद मूलकथा आरम्भ करता है। मगधदेश में राजगृह नामक नगर था। वहाँ के राजा का नाम श्रेणिक था। श्रेणिक कई सहस्र सुन्दर रानियों का पति था। एक बार विपुलाचल पर भ० महावीर का समवसरण हुआ। श्रेणिक राजा अपने समस्त सम्बन्धित परिकर के साथ भ० महावीर के दर्शनों के लिए वहाँ गया।
राजा की जिज्ञासानुसार भगवान् ने जीवादि तत्त्वों की व्याख्या की। इसो अवसर पर एक महातेजस्वी देव अपनी चार देवियों के साथ विमान से उतरा और भगवान् की वन्दना कर उचित स्थान पर बैठ गया । श्रेणिक ने कुतूहलवश उसके विषय में भगवान से पूछा । भगवान् ने बताया कि यह विद्युन्माली• नामक देव है जो सातवें दिन स्वर्ग से च्युत होकर इसी नगर में मनुष्य का जन्म लेगा तथा तपस्या द्वारा इसी भन से मोक्ष जायेगा। श्रेणिक ने देव के पूर्व भवों की कथा जानने की इच्छा भगवान् से प्रकट की। भगवान् ने देव के पूर्व भवों की कथा सुनाई। मगधदेश में वर्द्धमान नामक ब्राह्मणों का गांव था। वहाँ सोमशर्म अपनी पत्नी सोमशर्मा के साथ रहता था। उनके भवदत्त और भवदेव नामक शास्त्रों को जानने वाले दो पुत्र थे। कुछ दिनों बाद सोमशर्म व्याधि से इतना पीडित हुआ कि जीवित ही अग्नि में प्रविष्ट हो मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसकी पत्नी भी उसी समय चिता में जलकर भस्म हो गई। वियोग शांत हो जाने पर बड़े पुत्र भवदत्त ने राज्य संभाला। कुछ समय पश्चात् सुधर्म नामक मुनि नगर में पधारे । उनके
. १. डा० वी० पी० जैन द्वारा सम्पादित व भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से
१९६७ में प्रकाशित; प्रस्तावना पृ० ४३--४७ पर जम्बूस्वामी-विषयक रचना-सूची.