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८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक चन्द्रापीड का पुनः गंधर्व लोक में जाना और मृत्यु ।
( अनु० २५८-३००) ६. महाश्वेता और कादम्बरी का शोक एवं प्रतिबोधन ।
( अनु० ३०१-३१५) तारापीड और विलासवती का शोक, जावालि ऋषि द्वारा उद्घाटित
कथासूत्र को समाप्ति । ( अनु० ३१६-३२९) ७. श्वेतकेतु द्वारा भेजे हुए कपिजल का वैशम्पायन से जावालि आश्रम में
आकर मिलना। ( अनु० ३३०-३३७ ) जावालि आश्रम से वैशम्पायन तोते का भागना और चांडाल कन्या
द्वारा पकड़कर शूद्रक की सभा में लाया जाना । (अनु० ३३८-३४७) ८. लक्ष्मी द्वारा शूद्रक तथा वैशम्पायन के पूर्वजन्म का परिचय देना
और उनका जन्म शापमोचन । .( अनु० ३४१) महाश्वेता और पुंडरीक एवं चन्द्रापीड और कादम्बरी का समागम ।
. ( अनु० ३४२-५२ ) कादम्बरी के विषय में उक्त प्रसंगों के उल्लेख करने का केवल यही उद्देश्य है कि जिस प्रकार इस कथा-काव्य में प्रधान अथवा प्रमुख पात्रों को कथा तीन भवों की कथा का निर्देश करती है, ठीक उसी प्रकार अपभ्रंश के एकाधिक जैन चरित-कथाकाव्यों में कई-कई भवों को कथाओं का उल्लेख होता है। प्राकृत भाषा में रचित समराइच्चकहा' में तो समरा. दित्य के नौ भवों तक का इतिहास प्रस्तुत किया गया है। ___ संस्कृत के चरितकाव्यों को परम्परा में दण्डी ( ६०० ई० ) का दशकुमारचरित भी एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें दस राजकूमारों के देशाटन की कथा है। दशकुमारचरित के नायक अपनी इष्टसिद्धि के लिए उचितानुचित सभी साधनों का प्रयोग करते हैं। लक्षण-निर्माताओं या आचार्यों द्वारा निर्धारित परम्पराओं का दण्डी द्वारा उल्लंघन किया गया है । क्योंकि गद्य काव्य में भी कथा-नायक शीलवान्, धैर्यवान् और गुणवान् होना चाहिए । परन्तु दशकुमारचरित के दसों राजकुमारों को कुत्सित और गहित स्थानों पर भी विचरण करते देखा जा सकता है। इस कृति
१. हरिभद्रसूरिविरचित समराइच्चकहा (इसका संपादन हर्मन जैकोबी एवं
उसके बाद एम० सी० मोदी ने किया है ) ।