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प्रास्ताविक : ७
था । जिसका विवेचन कथा और आख्यायिका का लक्षण प्रस्तुत करते समय इसी अध्याय में आगे किया जायेगा ।
बाणभट्ट की कादम्बरी संस्कृत साहित्य में एक अनमोल रत्न है कादम्बरी का कथानक एक विशिष्ट महत्त्व रखता है । इसमें प्रमुख पात्रों के चरित्र को तीन जन्मों की व्यापक पीठिका पर प्रस्तुत किया गया है । फिर भी विशेषता यह है कि कहीं भी शैली प्रवाह में, कथानक की रोचकता और उसके तारतम्य में अवरोध उत्पन्न नहीं होता । कादम्बरी की कथा के सम्बन्ध में डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने लिखा है : 'कथा की दृष्टि से कादम्बरी का संस्थान उस वसुधान-कोश के समान है जिसमें ढक्कन के भीतर ढक्कन खुलता हुआ पद-पद पर नया रूप, नया यश और नया विधान आविष्कृत करता है । यहाँ पात्रों के चरित्र एक जीवन में नहीं, तीन-तीन जीवन पर्यन्त हमारे सामने आते हैं ।' 'इसकी कथावस्तु को संक्षेप में इस प्रकार देखा जा सकेगा -
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१. शूद्रक की राजसभा में चांडाल कन्या का आगमन तथा वैशम्पायन तोते का परिचय और उसके द्वारा कथा का आरम्भ ।
( अनुच्छेद १ - ११ तथा अनु० १२-१६ )
२. विध्यादी - वर्णन | ( अनु० १७ - ३५ )
जावालिका आश्रम, जावालि ऋषि द्वारा वैशम्पायन तोते की कथा का आरंभ | ( अनु० ३६-४३ )
३. उज्जयिनी और तारापीड का वर्णन, चन्द्रापीड का जन्म |
( अनु० ४४ - ६७ ) चंद्रापीड की शिक्षा, यौवराज्याभिषेक और दिग्विजय |
( अनु० ६८ - १२३ )
४. अच्छोद सरोवर का वर्णन, चन्द्रापीड और महाश्वेता की भेंट एवं महाश्वेता का अपना वृतांत कथन ( अनु० १२४ - १८१ )
कादम्बरी और चन्द्रापीड का प्रथम मिलन | ( अनु० १८२ - २१२ ) ५. चन्द्रापीड का उज्जयिनी में लौटना, कादम्बरी का विरह और प्रेमसंदेश | ( अनु० २१३ - २५७ )
१. डा० वा० अग्रवाल, कादम्बरी: एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ३. २. वही, पृ० ३-४.