________________
९२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
दमयन्ती-नल प्रीति कहानी, भाषति सरस मधुर मुख बानी। . बहुत आनन्द प्रेम गुन गावै, एक-एक अच्छर समुझावै ॥ माधव काम को कीर्ति बखानो, जिहि सुनि मन बिसरावै रानी। उषा कथा जबै अनुसारी, तव चितई भरि नैन कुमारी ॥ चित्ररेख अनुरुद्ध को लाई, जब ऊषा मनमथ्य सताई। मधुमालति सों कुंवर मिलावा, सो कविता गुन गाननि गावा ॥
(चंपा० ७८ ) चित्रित सकल प्रेमरस प्रीती, माधौ कामकन्दला रीति। अग्निमित्र यौरावत धाता, भरतरि प्रेम पिंगला राता॥ .
(स्वयं० २३३-३४). इन विभिन्न प्रेमाख्यानकों की उल्लिखित कथाओं में से मात्र दो मृगावती और मधुमालती की ही उपलब्धि हुई है। शेष उल्लिखित . कथाएं हिन्दी में प्राप्त नहीं हैं। इन कथाओं के विषय में पीछे लिखा गया है। ___कथाकाव्यों के शिल्पगत विकास की दष्टि से उन पर विचार करने के बाद पता चलता है कि लगभग सभी प्रेमाख्यानों ने अपने पूर्ववर्ती प्रेमाख्यानों के पथ का अनुगमन किया है। कथाविन्यास, चरित्र, कथोद्देश्य, वस्तुवर्णन, नगरवर्णन, हाटवर्णन, सरोवर-वर्णन; युद्ध-सामग्रीवर्णन और प्रसाधन-सामग्रो-वर्णन आदि में प्रायः एक जैसी वर्णन-परिपाटियाँ देखने को मिलती हैं। उदाहरण के लिए शायद ही कोई प्रेमाख्यानक ऐसा हो जिसके नायक-नायिका के माता-पिता को सन्तान न होने का दुःख न रहा हो। बाद में शिव-पार्वतोस्तुति अथवा योगी आदि की इष्टसिद्धि से संतान को प्राप्ति और उस सन्तान के भविष्य की ज्योतिषियों द्वारा घोषणा । भविष्य की घोषणा में प्रायः प्रेम-विरह को घटना का समावेश, किसी दैवी सहायता का होना आदि बातें आवश्यक रूप से मिलेंगी। इन उदाहरणों को खोजने के लिए किन्हीं विशिष्ट काव्यों का नामोल्लेख करना इसलिए आवश्यक नहीं है कि यह तथ्य सभी प्रेमाख्यानकों ( अपवादस्वरूप एक-दो को छोड़कर ) को थाती है ।
१. पुहकरकृत रसरतन, सं०-डा० शिवप्रसाद सिंह, पृ० १३८.. २. वही, पृ० १९१.